रघोत्तम महराज फेर रावन बध के लीला के तियारी करे लगिस । “कइसनो ढंग ले मारनाभर ताय” बिसाहू किहिस ।
कइसनों ढंग ले काबर जी ? महराज पूछिस । बिसाहू किहिस - महराज, मंय घनाराम मंडल संग तिरपुरी कांगरेस म गे रहेंव ग । ओती के गांव मन म घुमें के मौका लगिस । हमर छत्तीसगढ़ म गांव-गांव रावन । रावनभांठा गांव के बाहिर में । ऊंहा खड़े हे रावन । सौंहत माटी पथरा के । छत्तीसगढ़ म रथे पक्का रावन ह महराज । दूसरा इलाका के गांव म नई देखब म आय रावन के अइसनहा मुरती ।”
बिसाहू के बात सुनके रघोत्तम महराज गजब हांसिस । किहिस-”वाह बिसाहू, गजब गुन्निक हस भई तंय हर । बात म बात निकारे के कला तोर करा हे । बिसाहू ।”
बिसाहू किहिस - “हम बताबो त छोटे मुंह बड़े बात हो जाही गुरू । फेर हमला लागथे के ये जऊन बात हे तऊ न सोचे के लइक हे । गांव गांव पक्का रावन के माने का हे ? सब गड़बड़ हो जथे काम हा येकरे सेती । हमरो गांव म हावय पक्का रावन । एक तो बिसनू दाऊ हे उपराहा म रावन भांठा म खड़े हे ।”
महराज किहिस - “बिसाहू बात अइसे ये जी । कथें नहीं तइहा के बात ल बइहा लेगे । तइहा तइहा के बात ये रे भाई । हमर ये छत्तीसगढ़ हा आजे थोरे बने हे ग ।येला कौसल परदेस केहे जात रहिस जी । तइहा जुग म । कौसल परदेस ! कइसे महराज, कोसल तो हमर ससुर के नाव हे । गांव-गांव कौसल नाव के मनखे रथे ओकर सेती ये का महराज ?” बिसाहू पूछिस ।
महराज कठलगे । किहिस - “बिसाहू इही ल केहे जाथे भजनहा ले आगू रागी, त भोसकबे करही पागी ।” अरे भाई पहली मोला तो बतावन दे बिसाहू । तोर ससुर के नाव कौसल हे तो तोर ममादाई के नांव
कौसिलया हे । फेर बात ल जान तो ले । हमर छत्तीसगढ़ दक्षिण कोसल कहाथे जी । देस राहय कोसल । देसके राजा के बेटी होइस कौंसिला । ओकर बिहाव होइस अजोइधा के राजा दसरथ संग । तिंकर बेटा राम । माने के राम ह हमर भांचा ये । तभे तो छत्तीसगढ़ म भांचा के पांव ममा मन परथे के नहीं । माने गणित ताय, राम हमर भांचा त सबे भांचाराम पांवपरे से काम । याहा दइसन ताय ।”
बिसाहू किहिस - “अच्छा समझाय महराज । तभे हमर गांव गोढ़र म भांचा ल कपिला भांचा कहे जाथे । वाह जी वाह । अउ एक बात अउ हे महराज अंकलहा नाचा गीत धड़काथे तभो बीच-बीच म जय सतनाम भांचा, जय सतनाम भांचा केहे बिना नई छोड़य ।”
महराज किहिस - “हॉ ये बात । भांचा माने भगवान बरोबर । रगरग म कन-कन म तो इहां सत बसे हे । कौसिला अस बेटी के कोसल देस । हमर भांचा मारिस रावन ल त बिसाहू गांव के बीचों बीच रथे रामलीला चौंरा । अउ गांवके बाहिर मा रावन भांठा । माने के बात अइसे ये के राम तो हमर हिरदे बीच म बसे हे फेर बाहिर रावन खड़ेे हे । राम ल सुरता करत राहव । धरे रहो मन धीर । तब बाहिर खड़ेे रावन सों लड़ के जीतहू रे बाबू । भीतर के राम जीतही तब बाहिर के गरजत रावन ला मारहू ।
बिसाहू किहिस - “धन हे महाराज, धन्न हे तुंहर गियान । वाह रे हमर लीमतुलसी गांव । जिहां रघोत्तम महराज अस भांटो । महराज हांस के किहिस - अउ बिसाहू अस सारा । दूनों हांस पारिन ।”
ओती ले अंकलहा संग घनाराम मंडल आगे । हांसत देखिस त अंकलहा किहिस - बिसाहू ह मोरे चारी करके हंसवावत होही महराज ।
बिसाहू किहिस - “अंकलहा, तय चूक गेस । महराज किया बढ़िया बात बतइस । रावन के बारे म । अंकलहा किहिस - बिसनू ल रावने बना देव जी । अरे भइया हो, मंय बतायेंव ग बिसाहू ल हमर कौसल परदेस याने के छत्तीसगढ़ के महत्तम । फेर अउ कभू बताबो । अभी तो,
रावन मारे के समे हे । फेर चलव रावनभांठा चली।
दसराहा के दिन लीमतुलसी गांव म मेला लग जाथे । चारों मुड़ा के मनखे सकलाथें । लीमतुलसी गांव के भांठा बांचे हे । पटपर भांठा । गाड़ी-गांड़ा ढ़िलाय हे भांठा भर । बनत हे जेवन पानी । लीला के लीला, मेला के मेला । रावन बध के बाद लीमतुलसी गांवके मेला सिरा जाथे । ऐसो पानी गिरई के मारे असकट होगे । मेला सुरू होय पइस तइसने दे पानी । रद-रद-रद-रद । चोरो-बोरो होगे । कइसनो कर-कुरा के रावन बध होइस । उसल गे मेला ।
घनाराम मंडल बिहनिया पहुंचगे । महराज घर । आके किहिस महराज, हरहुना धान बो पारे रहेंव ग । आज हंसिया गिरही । चलतेव नरियर फोर देतेव खेत म।
महराज किहिस - “हरहुना के जमाना हे मंडल । माई के जमाना नंदावत जात हे । बने करे हरहुना बो देस । चल फेर चली । मैं तो मुधरहा उठ के नहइया आंव ग । चली फेर । दूनो गीन चेटुवाबाट । खार भर धानेच धान । धान के खेत ल देख के महराज किहिस - मंडल, भोजली गीत म ये बात आथे ग ...
“देवी गंगा, देवी गंगा, लहरा तुरंगा,
हमर भोंजली दाई के सोने सोन के अंचरा ।”
छत्तीसगढ़ के धनहा खेत ह धान उछर देथे मंडल । धन्न हे हमर धरती मईयां । तबले हमर छत्तीसगढ़ म गरीबी गजब हे जी ।
मंडल किहिस - “महराज, हमर सियान काहय, भुइयां बांझ नई होवय, जांगर बांझ हो सकत हे । कुछू हमरो गलती हे महराज । फेर अब धीरे-धीरे सुधरही ग । चकबंदी नई होय रिहिस त गजब गरीबी रहय । चकबंदी होगे त देख न सब खेत एक चक म आगे । पानी पल्लो करब म अउ खातू माटी पालब म सहूलियत होगें । लक्ष्मीदाई के कोरा हरियागे । हरहुना माथ अरो देहे महराज अउ देखव ओती । वो खार म अभी माई धान पोटरी भर होय हे । बीच म खेत मन म गोबरछर्रा हो पाय हे । दू चार
धान छटके पाय हे । आप तो बस मंतर मार के नरियर फोर दव गुरू । येसो बिहाव माड़े हे । अउ अनपूरना घलो छाहित हे । मंतर मार के महराज फोर दिस नरियर । गिर गे हंसिया खेत मा । धान लुवई सुरू होगे ।
घर डाहर आवत खानी महराज किहिस - “मंडल, येसो चीला जल्दी खाय बर मिलही तइसे दिखत हे ।” मंडल किहिस - “महराज, हरहुना के पहली बोझा आप मन के । पहली चीला आपके फेर हमर ।”
महराज हांस पारिस । किहिस - “देख मंडल, हमर छत्तीसगढ़ म परब तिहार अउ रोटी-पीठा के गजब महत्तम ग । मुर्रा, लाड़ू, करी लाड़ू मुठिया, फरा, सोंहारी, गुरहा सोंहरी, ठेठरी, खुरमी, बरा, अइरसा, पोरी रोटी, वाह-वाह ।
मंडल टोकिस - “अउ चीला महराज ?”
“ले फेर उही बात ... हाय रे मोर बोर बरा, किंदर फिर के मोर करा । चीला का कहि पारेंव ले मोही ल घेर लेस ।”
मंडल किहिस महराज, पताल के चटनी, अउ चीला के जोड़ी ग । गजब जमथे ।
महराज अपन बाई ल सुनाती ठठ्ठा मड़इस - “देख तोर भाई का काहत हे, तोर मोर जोड़ी गजब जमथे काहत हे ।”
मंडल किहिस - “दीदी, ससुरार म रहइया पंडित ल जान ते हरहा गोल्लर ल जान । हम काहत हन चीला अउ चटनी के जोड़ी के बात अउ याहा ह हमला टिमाली मड़ावत हे ।” सिबतरी बाई किहिस - “मोर भाइमन ल ठगही नहीं ते महराज के पेट के पानी कइसे पचही ।”
महराज किहिस - “खेत ले आवत हन, सब पच गे । अब भाई तोर आय, बिराजे हे कुछ खवा पिया भाई । ठठ्ठा दिल्लगी गजब होगे । बाई किहिस - दुधफरा बनाय हंव । लानत हंव ।”
मंडल किहिस - “आजे पूजा कराय हंव ग । आजें तुंहर घर कइसे, खाहूं महराज ।”
महराजा किहिस - “महराज घर झन खा न जी, अपन दीदी घर
खा । महराज के बात सुनके सब हांस परिन ।
दूधफरा झेल मंडल अउ सुन ।
महराज किहिस - “हमर छत्तीसगढ़ के खान-पान जी । वाह किया बात हे। कढ़ी किबे त किसिम किसिम के । डुबकी कढ़ी, फोकट-कढ़ी, चिला-कढ़ी, बुंदी-कढ़ी ले एके साग चार रकम के जिमीकांदा, आलू- बरी, झुरगा अउ पापर, बिजौरी, अथान का पूछना हे ।”
मंडल किहिस - “महराज, लार बोहाय अस करथे ग । जादा झन बता ।” महराज किहिस - “मंडल अभी कहां पूरे हे । भाजी तो देख करमता-भाजी, चना-भाजी, कुसुम-भाजी, तिवरा-भाजी, खोटंनी -भाजी, चेंच त लाल चेंच, पंडरी, चेंच, अमारी, अउ पोई-भाजी । गुड़रू - भाजी, मुसकेनी-भाजी । मुस्केनी भाजी खाओ , मुस्कुराते हंसते जाओ ।”
सिबतरी बाई कि हिस - “तोर तो बस लमाना हे । रांधथंव मुस्केनी भाजी त किथस के मिठावय नहीं ।”
महराज किहिस - “रांधव-रांधव म फरक हे ...”
अउ दे हांसी ।
महराज फेर लमइस - देखो जी, मछरिया -उरिद, गुमी-उरला, बर्रा पटवा, चरोटा, चुनचुनिया, याहा तरा भाजी । वारे वारे छत्तीसगढ़ म भाजी खाके रहि जाबो जी । हमर छत्तीसगढ़ के महिमा गजब हे ।
अभी महिमा अउ बखाने जातिस के बिसाहू धमक परिस । संग म बिसनू दाऊ अउ अंकलहा । सब आके पांव परे लगिन । महराज बाई ल हुत करा के किहिस-सिबतरी, देख तो बिचारा मन दुधफरा खाय बर घोंडइया मारत हें । दे दे बपुरा मन ल घलो ।
हांसत -हांसत बिसाहू किहिस - “महराज, मर मर मरे बरदवा खाये बर तुरगवा । हमन रात रात भर पाठ करेन लिल्ला म अउ दुधफरा मिलत हे तंुहला ।”
महराज किहीस - “इही चलन हे रे बाबू । कमाय लिंगोटी वाला, खाय टोपी वाला । हम आन टोपीवाला जी, सदा दिन खाबो । कस - कस
के खाबो ।” तब तक सिबितरी दीदी कटोरी मन म दुधफरा धर के आगे बिसाहू किहिस - “भई गे महाराज, हाथ धो लव । अब पारी हमर हे ।”
पारी तो बाबू रे देवारी के हे ।
“दसराहा निपटगे अब गोड़पारा के मन येसो बिसेस रूपसे कुछू करना चाहत हें ।” घनाराम मंडल किहिस ।
अंकलहा किहिस - “महराज, येसो का का होगे ग । सिकरनिन फांसी लगा लिस । गोंड़पारा म अतियाचार के अंधियार होगे हे ग । चलतेन अउ दू चारबात करतेन ।
बने बात ये जी,” चलव महराज किहिस ।
सब उठ के गोंड़पारा चल दिन । रद्दा म मिलगे मनहरण कबि । संगे-संग आय लगिस । आके महराज के पांव पैलगी करिस अउ किहिस - “फूफा मंय एक ठन कबित्त बनाय हंव ग । सुनबे त बताहूं ।”
महराज किहिस - मनहरन, चल गोंड़पारा में फेर सुनबो ।
बिसालिक गोंड़ के चौरा म सब बइठिन । महराज किहिस देखव जी, “जउन होगे तउन होगे । दसराहा निपटगे, फेर देवारी सुन्ना नई परे चाही । गौरा-गौरी के जस गाना हे । देवता ल मनाना है ।”
बिसालिक आंसू पोंछत किहिस - “गुरूजी छाती म पथरा माड़ गे हे ग । जबले हमर गांव के बेटी झूल गे फांसी म तबले नजरे म ऊ ही ह झूलथे । का करन भाई रिसाही महादेव त रिसा जाय । हमर बर तो रिसायेच हे । खुस हे तऊ न तो ठेठवार अस पोठहर बर खुस हे ।”
महराज किहिस - “देखव जी, गंवार मरे लकड़ी के बोझा । ठेठवार अपने करम म जाही । अब देखव न ठेठवार डोकरा ह किराय कुकुर अस अलिन गलिन म किंदरत हे । बइहा होगेहे । तंुहला देवारी के सब खर्चा ये सो मंडल घनाराम दिही । दिन देवारी आत हे । रिसाय अऊ दुख करे म नई बनय ।”
बिसालिक किहिस - महराज, हम तो सदादिन तुंहरे संग हन ग । ठेठवार पारा तो हमला झांकब पाप रिहिस । तुंहर संग रेहेन त गत बने
रिहिस । कोजनी टूरी कइसे बइमान मन संग ... । सिकारी के बेटी माने हमर बेटी ग । गरीब गरीब के एक जात ।
बिसाहू किहिस - देख बिसालिक बड़े संग रिबे त खाबे बिरो पान, छोटे संग रिबे त कटाबे दुनो कान कहावत हे । दुनो बात देखत हन । महराज के बताये रद्दा म रेंगना हे । दुख सुख तो घाम छांव ये जी । आत जात रिथे । का घर के बइठे म दिन बीतही । त चल महराज के पाव पर अउ संकलप कर के ये सो गऊ रा गवरी के सवारी तोर घर ले निकलही । सदा दिन तोर घर ले निकलत आये हे । कइसे सुन्ना पारबे ।
बिसालिक उठ के पांव परिस अऊ घनाराम मंडल निकाल के खनखऊ वां गन दिस, दस ठन चांदी के रूपिया ।
किहिस - बिसालिक, “अउ कमती परही त बताबे ।”
बिसालिक किहिस - “का कमती परही भइया । तोर राहत ले कोन दिन कमती परे हे ग ।”
अउ टप्प ले ओकरो पांव ल पर दिस बिसालिक हा । मनहरन रखमखा के उठ के । किहिस - महराज फुफा गीत सुने बर परही ग ।
महराज कहिस - “भाग भइगे टूरा ह इहां कवित्त सुनाय बर डटे हे । बिन सुने चोला नई बांचय बिसाहू ।” ले मनहरन त सुना डार बाबू । मनहरन गला खंखार के फेर सुरू करिस...
सुतव गौरी मोर सुतव गौरा
सुतव गऊं टिया मोर, सुतव गऊं टनिन,
सुतव नगर के लोग ।
गीत सुन के महराज एक मुटका लगइस अउ किहिस - “हम जगाय बर कुमेटी करत हन अउ देख कबि हा सुताय चाहत हे । अरे मुरूख, कबि हा तो जगवारी के बात किथे जी । अभी जागे के पारी हे बेटा, सुतना हे बाद में । बिन जागे सुतब म का महत्तम हे जी ।”
“भुखाबे त खाबे,
जागबे त सुते पर पाबे ।
मनहरन हांसत हांसत महराज के पांव परिस अउ किहिस - “फूफा, देवारी मा गोंड मन गाथें तऊ न गीत ये ग । मोर नोहय । मैं तो दूसर बनाय हंव । सुनावंव ? महराज किहिस - “राहन दे ददा, बहुत होगे रे मनहरन । हमर जीव ल बांचन दे मोर बाप । खवाना न पियाना, खाली कबिता सुनाना । “अइसे कर मनहरन, एक दिन अपन घर म अच्छा दार - भात, कढ़ी, रमकेरिया के साग रंधवा । खाबो त सुनबों, सुनत सुनत खाबो ।”
देवारी बूता के मारे लीमतुलसी भर के का माई लोगन, का लइका सियान, सब बिपटा गें । ओती लुवई टोरई के कारज फदक गे । येती छाबना मंूदना । कइसे पंदरही बीत गे पते नई चलिस । गौरा चौरा मा एक हफ्ता पहली फूल कुचरागे ।
एक पतरी रैनी झैनी,
राय रतन ओ दुर्गा देवी...
गीत गौरा चौरा म सुरू होगे ।
बिसालिक के घर म छत्तर के बनाय गौरा के सिंगार सुरू होगे । गौरी बनिस सुकालू के घर म । गौरा चढ़िस नंदी म, गौरी ल बइठारिन केछुवा बना के । भरूहा काड़ी,माटी सनपना, धान के बाली, पीड़हा, गोंदा फूल, दीया, पोनी अउ तेल सब के सरंजाम होगे ।
बिसालिक अउ गोंड़पारा के भाई मन करसा बोहाय बर येसो घलो अपन बहिनी ल लेवा के लानिन । दुख तो रिहिस फेर गौरा गौरी के मान राखे बर बहिनी मन ल लेवा के लानिन । लुगरा, पोलखा, चुरी, चाकी, पइसा-रूपिया , सब दीन । ठीक समें म बहिनी मन करसाबोह के निकरिन । गंवखरा बाजा बाजे ल धर लिस- दधनिंग दधनिंग । धान के बाली, महऊ र रंग, चांऊ र गोबर, हरदी रंग म सिंगारे गौरी गौरा ल पीढ़ा म बोह के निकरिन । गीत सुरू होगे ...
झपिया के लुगरा, पहिर मोर बहिनी,
बोहि लेबे झालन बहिनी बोहि लेबे करसा ।
करसा सिंगारो भइया रिगबिग रिगबिग,
बहिनी सिंगारो भइया गोमची बरन के ।
काखर करसा हे रिगबिग-रिगबिग,
काखर करसा सिंगारे हो बहिनी ।
गौरी के करसा हे रिगबिग - रिगबिग,
ईसर के करसा सिंगारे हो बहिनी ।
गौरा -गौरी लेके सब निकरिन अउ घरो घर पूजा होय लगिस । गौरी-गौरा के बिहाव म सब लाड़ू बरा खवाय के बाद गारी गल्ला भड़ौनी के गीत चलिस । रामाधार बरात के आगू म कोंहड़ा तूमा लेके, कमचील के बनाय घोड़ा म चढ़के गजब नाचत कूदत निकलिस । माड़े राहय गौरा-गौरी म चारेां मुड़ा दिये च दिया । रिगबिग-रिगबिग जग जोत ।
बिहनिया हूम देवाय गिस । गौरा-गौरी बनाय के जगा म जाके सब हूम दिन, नरियर फोरिन अउ सिरोय बर गीत गावत निकरिन ।
सब संग मनहरन फेर गीत लमइस - सूतव गौरी मोर सूतव गौरा । दूसरइया दिन राउत मन के दिन कहाथे । काछन निकलिन । रामबगस, गनेस, सुखरू राऊ त मन ल निकारिन । घर-घर जाके मालिक मन । तिसरइय्या दिन ठेठवार मन के दिन । फेर ये बछर ठेठवार मन कमतिहा मानिन देवारी ।
लुवई भरदरा गे । खोजे का मिलतिस लुवैया फेर बिसनू दाऊ काहत लागय । सब जतका बनिहार तौन बिसनू दाऊ के खार ल लू लेतिन तब दूसर डाहर मुंह कर पातिन । दौरी बर घरो-घर ले बछवा बइला खोल के बिसनु दाऊ अघुवा के ले जाय । पहिली दाऊ के मिंजई हो लेतिस तब किसनहा मन के पारी आतिस । तइहा जुग के नियम । चलागन चले आय हे । अउ त अउ, गौटिया घर के बेटी मन ल लिहे बर जाना हे त काम बंद । लिह के लान तब तोर खेत म जाबे । नागर बक्खर, दतारी, गाड़ी-गड़ाही, दौरी, ओसाना-धरना, सब म अव्वल लम्बर । बिसनू दाऊ के काम चमाचम ।
महराज ल बने नई लागय फेर का करय । पथरा तरी हाथ चपकाय । मालगुजारी सासन म नई चलय । थोरूक सम्हलव भई । देस अजाद होगे । जवाहिरलाल हमर परधान मंत्री हे । सरदार पटेल लौहपुरूष कहावते हे । देस भर के राजा मन ल पानी पिया दिस । देस ल एक कर दीस । तऊ न देस के नेतामन के भाव ल राखव भई। महराज समझाय अस करिस ।
बिसनू दाऊ किहिस - महराज, ओरवाती के धार बरेंडी नई चढय । गौंटिया गौंटी करही । हमू पढ़े लिखे हन । जवाहरलाल जी के कपड़ा धोवावय इंगलै५ड में । ओकर बाप के आमदनी राहय पचास हजार रूपिया महीना । त राजा के बेटा बनिस राजा । कोन गरीब के बेटा बनगे परधान मंत्री महराज ? राज करही तिही राज करही टिटही के दरी सरग नई छेंकावय । बड़े-बड़े गीन इन मुंडी अटियइन । बिसाहू अंकलहा नाच कूद कर लंय महराज, राज तो बिसनू करही । कोनो नचइया, कूदइया, गुन्निक राज नई करंय । राज करही राजा चाहे डिरामा कतको कर लंय ।
महराज असकटागे । किहिस - बिसनू तभे गौसाई तुलसी दास जी लिख गें हें ...
“मूरख हिरदय न चेत, जो गुरू मिलहिं बिरंचि सम,
फूरहिं फरहिं बेद, जदपि सुधा बरसहिं जलद ।”
“का होगे महराज ?” काहत बिसाहू अंकलहा आ गें । महराज किहिस का होही जी । बिसनू दाऊ ल हम कहेन के गारी-गल्ला छोड़व थोरूक सुधरव । त का किथे नचइया कूदइया का पार पाही । राज करइया राज करही कथे । ले इही ल कथे अरसी खेत म गंड़वा बुड़गे । माड़ी भर धन हे ते बिसनू दाऊ के ठेस ल देख ।
तब बिसनू दाऊ किहिस - “महराज, महूं तुंहर चेला अंव ग । तेकर सेती सुन लेथंव । नहीं ते महराज रे काहत थपरा वाला खानदान ताय हमर गौंटिया खानदान महराज । हम माने हम ।”
महराज किहिस - जुरजोधन, कंस ला घलो सब गुरू समझइस
दाऊ फेर मानय तब । रावन ल कमती नई समझइन, फेर मानय तब ।
बिसाहू किहिस - “आजो ले रावन ल समझावत हन महराज मानथे कहां बुजा हा ।”
बिसनू घलो हांस परिस । बिसाहू के टिमाली के अरथ समझगे । महराज किहिस - “देखो जी, बहुत होगे टिमाली । सुनव । अंगुल म आये हे एक झन जोगी । गांव के गांव जात हें । हम सोचत हन के अपन चेला मन संग हमू चलतेन अंगुल । उही कोती ले जगन्नाथ पुरी चल देबो । जगन्नाथ जी के दरसन कर लेबो रे भाई ।”
बिसनू किहिस - “महराज, मोर महतारी रात दिन रटत रथे गा । चले चाही।” महराज किहिस के भई रातकुन आ जावव घर मा । सब बात कर लेबो तियारी करे बर परही ।
बियारी करके सब सकलइन । महराजी, घनाराम मंडल,बिसाहू अंकलहा, रघोत्तम महराज अउ गांव के दू तीन झन अपनलोग लइका संग जाय बर तियार होगे ।
तीन दिन बाद रवानगी रिहिस । गांव भर मा बात फइल गे । होत होत पचास झन होगें । घरोघर तियारी चले लगिस । रोटी पीठा बनगे । मुड़वा लोटा, गिलास, चद्दर, एक डंडा, संग म कं डील । जेकर सो जो हो सकय राखत हें । बिसनू दाऊ बाल्टी अउ कोपरा रखवाय बर मान गे । कराही, अऊ जेवन बनाय के समान छेना-लकड़ी सब सिलहो लीन । पुराना मसरी, चना अउ आमा- खोइला, पताल-खोइला सब धरा गे । होगे जगन्नाथपुरी जाय के तियारी ।
महराजी, सुधू केंवट मंजीरा, खंजेरी अउ ढोलक धर लीन । मसाल के भभका राधेसाम नाऊ धर लिस । महराज किहिस - “राधेसाम, माटी तेल बने धर लेबे बाबू । बिसनू दाऊ सो मांग लेबे ।”
सब परबंध होगे । गांव भर के मनखे छोटे बड़े सकलागें । पंदरा दिन बर गांव ले बाहिर जात रिहिन । कतको झिन रोय लगिन । महराज किहिस -”देखो जी, सदा दिन बर नई जात हन । भगवान श्री जगन्नाथ ल
दसों अंगरी के बिनती करबों के हे जगन्नाथ, हमर लीमतुलसी बर छाहित राह । ये गांव ल बिरिन्दाबन कस राख महराज । महराज के अतका कहना रिहिस के महराजी उठा लीस पद ...”
“संत मिलन को जाइये, तज माया अभियान हो,
ज्यों ज्यों पग आगे बढे कोटिन जग्य समान हो ।”
बिसाहू दूसर दोहा उठा लीस ...
बहुत दिनन की जोबती, बाट तुम्हारी राम हो,
जिव तरसे तुझ मिलन कंू, मनि नाही विश्राम हो ।
...भजन बोलो ...
गावत -बजावत सब गांव भर के लइका सियान ढाबा गांव तक अइन । उहां ले सब बिदा करके लीमतुलसी गीन । जगन्नथिहा मन निकलगें महंतलाव रद्दा बर । ढाबा ले अरकट्टा सोज पैडगरी रद्दा धर लीन । जेवन बनाय के बेर महंतलाव पहुंच गीन । उहां लइका सुरताय बर धर लीन । बिसाहू अपन बाई ल करलाही काहय । ओकर करलाय अस बोली ल सुनके नाव धरे राहय बिसाहू ह । ओ ह भात रांधिस । महराज बाई ल देख के किहिस - देखो रे भाई हो , हमर बाई ल गजब छुवा लागथे, थोरूक दुरिहा म रइहू । आगी के लपट झन आ जाय, छुवा जाही नहिं तो ।
सिबतरी बाई भन्नागे । किहिस - “तंुहर चाल ल मोर मइके भर के सब जान डरे हें । अपन ददा दाई, भाई बहिनी मन सों मैं का छूवाहूं । जिकर कोरा म मंय खेल के नान्हे ले बड़े होय तिंकर सो छुवाहूं ।”
महराज थपड़ी पीट के हास दिस । बाई किहिस - तिरिथ बरत जाय लागथें तो बड़े-बड़े सुधर जथें, फेर वाह रे गुन्निक । इहों ठट्ठा दिल्लीगी बिन पेट के पानी नई पचत हे । को जनी दई, जगन्नाथ महराज के सरन में पहुंचत ले का का नाटक देखाही मनखें मन ।
महराज मुच-मुच करत बिसाहू संग तरिया कोंती रेंग दिस । जेवन पानी बनगे त सब झन भोजन पइन । संझौती फे र निकरिन रइपुर टेसन ।
गावत बजावत पहुंचिन । उहां चारो मुड़ा के मनखे । टेसन भर मनखेच मनखे । सब अंगुल जवइया । बिसाहू किहिस - महराज यहा का मेला ये गा । कोजनी भई काबर बतरकिरी अस सब झपाय चाहत हें ।
महराज समझाइस - बिसाहू दुनिया म सबो दुखी डंडी हें जी । कोनो ल धन चाही, कोनो ल मान । कोनों ल तन चाही, कोनो ल डिह म दिया बरइया बेटा । सब काही न काही मांगे बर जात हें ।
अंकलहा ल गजब अचरज होइस । अइसन अनपबर मनखे नई देखे रिहिस अंकलहा हा । दल मन के भजन कीर्तन जगा जगा चलत राहय । महराज बतइस के खुर्दारोड के टिकस लेना हे । उहां ले जाबेां अंगुल । टिकस लेवागे । गाड़ी अइस । चढ़ा उपरी सुरू होगे । तरी उपर मनखे । बेलासपुर के जात ले कतको अधमरा होगें । यहा काये दई, घर के जीव ला वन म डार पारेन सिबितरी बाई किहिस । बेलासपुर ले फेर आगू चलिन । टेसन टेसन म रकम-रकम के गोठ । कोनो काहंय के अंगुल मात गे हे एक ठन हर्रा अउ गांव भर ल खोखी । का करय बिचारा साधू जग भर बयमारी ।
थोरूक अउ आगू गीन त अउ अलकरहा बात सुनिन । राम राम काहत रद्दा कटिस । गिरत हपटत सब पहंुचिन अंगुल । उहां न पिये के पानी न रेंगे के रद्दा । सब तिरथाहा अकबका गें । मनखेच मनखे । पुलुस वाला मन रद्दा रोक दिन । तब महराज जानिस के अंगुल म धुंकी उठ गे हे । सब फेर टेसन अइन । रद्दा म सिबतरी बाई लथर गे । देखो देखो होगे । दे उल्टी दे उल्टी । बिसाहू के बाई ल उल्टी टट्टी दूनों सुरू होगें । कइसनो करके गाड़ी म सब झन बोजइन । घंटा भर म दूनो नारी परानी परलोग सिधार गें । महराज बोम फार के लगिस रोय । बिसाहू सब ल समझाय लगिस । महराज ल रोवत-रोवत उल्टी होय लगिस, देखते देखत महराज, घनाराम अउ गांव के सात मनखे उपर डाहर चल दिन । डब्बा म चिहुर उड़गे । लीमतुलसी गांव के भाग फुट गे । रोवत कलपत बिसाहू अंकलहा ल किहिस - “सब ल तो धुकी दाई चह दिस अंकलहा का मुंह देखाबो
भाई लीमतुलसी मा । हमू मन ल भगवान चिन्ह लेतिस जी । महराज गय त हमर आत्मा उड़ागे । का बांचगे अब लीमतुलसी म मोर भाई ।”
अंकलहा किहिस - मैं का तोला समझाहूं, बिसाहू । कभू आय नई रेहेन भइया बाहिर । “कभू काल के करसि उधवा तेकर कुला ल चाबिस घुघुवा ।” तौन हाल हे । का करत करत का करि डारेंव गुरू काहत रोय लागिस अंकलहा । लास मन ल लेके रइपुर म उतरिन पुलुस वाला मन । जतेक लास रिहिस सब ल झोंकवा लीस । अंकलहा अउ बिसाहू बांचे मनखे मन ल धर के रोवत कलपत गांव के रद्दा धरिन । बिसनू दाऊ भगा गे अलग ।
लीमतुलसी गांव जाके बिसनू दाऊ कुमेटी कर लीस । गांव भर के मनखे मन ला सकेल के किहिस के धुंकी लेके आवत हें सब । इहां गांव के गांव खलक उजर जाही । तिरथाहा मन ला नरवा तीर म छेंक लीन अउ तीर तखार के गौंटिया पारा के टुरा मन ऐलान कर दिन के एक पन्दरही नरवा मा रहि लिही तभे आहीं लीमतुलसी म । ये बात ल सुनिन संतू, समे, सभा, दानी सब उमड़ गंे । किहिन के आज तक लउड़ी बेड़गा नई उठायेन फेर अब कहूं गौंटी देखाहूं ते चाहपट मात जही । सब अइन गांव के अपन हितू पिरितु ल संग म लेके । अंगुल ले बांच के आधा थोरहा मनखे आंय रहंय । दानी बिहुस होगे । बिसाहू के खांध म मुंड़ मड़ाके गजब रोइस, ममा, मयं अनाथ होगेंव ग । का जी के रिहूं । न दाई, न ददा ।
बिसाहू किहिस - “देख भांचा, महराज कहय ग बिधि के लिखा न मेटन हारा । तंय गुन्निक भांचा अस ग । हम तोला का समझाबो ददा । तहीं हमला समझाते । जौन होगे तौन होगे । घनाराम मंडल चल दिस, महराज हमला अकेल्ला कर दिस, दीदी गय । तोर मामी घलो सिरागे । मोरो जग अंधियार होगे भांचा ।”
संग म आय सभा, संतू अउ गांव भर के मन समझइन । सभा समेलाल ला धरिस । संतु सम्हारिस दानी ला अउ सब झन रोवत ललावत
गांव बर निकरिन । बने बने तिरिथ करके आतिन त का उछाह रितिस, कतेक गावत बजावत परघावत लेगतिन । चारो मुड़ा सोर हो जतिस, फेर वाह रे विधाता ।
गांव के तीर म बड़े जनिक बर पेड़ ल खड़े देख के महराजी बोम फार के रोय लगिस । रोते रोवत जोर से नारा लगइस - गुरू रघोत्तम महराज अमर रहंय । सब झन सन्ना गें । महराजी दानी ल पोटार लिस । अउ एक दोहा रोते रोवत गोहार पार के सुनइस ...
“हेरत हेरत हे सखी, रहया कबीरा हिराई,
बूंद समाना समुंद में , सो कत हेरी जाय ।
सुसकत सुसकत महराजी किहिस - “भांचा, अब रघोत्तम महराज सदा दिन बर हमर हिरदय म समा गे ग । हम सब ओकर भाव के संतान अन तंय ओकर परंपरा ल आगू बढ़ाबे दानी महराज ।”
अंकलहा किहिस - “भांचा दू अक्कड़ भांठा अउ तीन अक्कड खेत मंय भागवत आसरम के नांव म आज चढ़ा देव ग । तोला हमर रघोत्तम महराज के भागवत, लिल्ला सब ला सम्हालना हे ।”
दानी रोते रोवत किहिस- “तुंहर जइसन हुकुम होय भई । मंय तंुहर कोरा म बइठे हंव ग । तंुही मन मोर महतारी बाप, तुंही मन गुरू, लइका ल तुमन अतेक बड़ सियानी देत हव । तुंहर बड़ई हे भई कहे गे हे राम से बढ़कर राम कर दासा । तुहीं मन बड़े अव । मोला अब कोरा ले झन उतारहूं ग...” काहत काहत दानी रोय लागिस ।
ओ दिन गांव म घरो घर चुल्हा नई बरिस । सब झन जुर मिल के दानी के घर गीन । जब रघोत्तम महराज राहय त कतेक कुलकत राहय दानी हा । अब कइसे निचट बुढवा अस दिखत हे । बिसाहू अंकलहा ल किहिस - देख अंकलहा, बाप के बल भगवान के बल गा । हमर भांचा हा एके रात म खंख होगे । लइका ले सियान होगे गा ।
बिसाहू अउ अंकलहा उही दिन ले दानी महराज के संगे संग रहे लगिन । रात दानी बांड़ा मं सुतंय । तीन दिन तीन रात दानी नई सुतिस ।
झकना के उठ जाय । दीदी तंय कहां चल देस मोला छोड़ के, कहि के रोवय । ओती समेलाल ल सम्हारे बर परय । घनाराम मंंडल के बेटा समे । पढ़े लिखे समझदार फेर दुख म बड़े- बड़े के समन्दारी सिरा जथे ।
बड़े महराज रघोत्तम गुरू रितिस त कतेक हमन ला सम्हार लेतिस ग । गय गुरूजी हा अपन देस गा । सदा काहय...
“हम बासी उस देस को, जहां पर ब्रम्ह का खेल,
दीपक जरै अगम्य का, बिन बाती बिन तेल ।”
चल दिस ग । हमला अनाथ कर दिस । गांव भर के मनखे धीरे-धीरे सकलागें । सबके सोचना रिहिस के अब कइसे करबो किरिया करम । लहास ल तो नई पायेन । अब का करबो । बिसनू दाऊ मुड़ी तरी डाहर गड़ियाय आगे । मनहरन ओला देख के रोसिया के उठगे । किहिस - “रावन के रमदल्ला म का काम । गांव म आवन नई देत रेहे । अरे, एक दिन सबके उही गत होना हे ।सब झन सन्ना गें ।”
बिसनू दाऊ हाथ जोर के किहिस - “मय हा रघोत्तम महराज के बिगड़े बेटा आंव ग । मोरो पाप ला धोवन दव । दानी महराज ल लेके मंय इलाहाबाद जाहूं । तभे मोला हरू लागही ।”
सब चुप सुनत रहिगें ।
दानी महराज किहिस- “देख दाऊ, अब बाप महतारी तोचल दिन । तुम सब अब मन के मालिक हव । चाहौ ते अपन धन, खेत, मंदिर, सब ले लव । मंय बैराग ले लहूं । मोला अब छोड़ दव भई ।”
दानी महराज के बात ल सुनके बिसनू दाऊ हाथ जोड़ लीस । किहिस - “देख महराज, हमर गुरू रिहिस तोर सियान हा ग । अब तय हमर गुरू । गुरू ल रिस नई करे चाही भई । जौन होगे तौन होगे । छिमा दिहू । हमरो पत राख लव भई ।”
गांव भर के सबो पारा के मनखे सकलाय रहंय । दानी किहिस - देखव जी, हमर बाप सदा छत्तीसगढ़ के जस गइस छत्तीसगढ़ म गांधी महात्मा अइस । हमरे छत्तीसगढ़ के सुन्दरलाल बबा ल वोहा अपन गुरू
किहिस । छत्तीसगढ़ के गांधी सुन्दरलाल बबा राजिम तिर के चमसूर गांव के रहैया बारागांव के मालगुजार । फकीरी धर लीस । देस बर बैरागी बनगे । ओकर गांव के लकठा म बहे हे राजिम तिर महानदी । जिहां संगम म कुलेश्वर महादेव बिराजे हें । हम अपन बाप-महतारी संग दू तीन बेर उहां गे हन । हमर बाप काहय, बेटा जब मैं नई रिहंू तभों तंय राजिम अउ महानदी जरूर आबे । हमर छत्तीसगढ़ के गंगा ये गा । हम इही म तरबो दानी ।
मोला ओकर बात हा सुरता हे । हम इलाहाबाद नई जान । गांव भर के मनखे जौन जा सकत हें, राजिम सब जाबो अउ पुरखा मन के सुरता करके महानदी मे असनान करके आबो ।
उही हमर बर पतित पावनी, उही हमर बर गंगा,
महानदी के सरन म जाके, करबो तन मन चंगा ।
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अतेक सुघ्घर रचना बर आप ल कोटी कोटी बधाई एवं शुभकामनाएं एमा गाँव के वास्तविक परिस्थिति के वर्णन हे
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