चार

गाड़ी फंदा गे । अंकलहा के गाड़ी म रघोत्तम महराज बइठिस ।
     बिसाहू, घनाराम मंडल चलिन अपन छकड़ा गाड़ी मा । बिसाहू गाड़ी अउ बइला के बड़ सउखीन । बिसाहू बढ़ई काम म पके । पक्का उस्ताज । घर नेता ले, गाड़ी, नागर-बक्खर, बंधवा ले । बिसाहू बिन काम के कभू नई बइठय । अउ ते अउ, किस्सा-कहिनी सुनत रइही, हंुकारू भरत रइही, फेर ढेरा आंटे ल नई छोड़य ।
     छंटवा  बइला, चुनिंदा डोरी अउ दुलही डौकी अस सजे धजे गाड़ी बिसाहू के बिसेसता ये । अतराप के सबो जानथें ।
     खनखन खनखन चलिस दूनो गाड़ी । गांव ले निकरिस गाड़ी अउ गांव वाला मन जान डरिन के टूरा मन के होगे कयलान ।  बिहाव माड़गे । कका के नता वाला सियान मन गजब ठट्ठा मड़इन लइका मन ल । ताते-तात खाहू रे बाबू हो, किहिन । फेर अइसन बात ये जी, एक नहीं, तीन बिहाव । समेलाल के समे आय रिहिस बने बात ये फेर संतू अउ सभा सब एक संग पागा बांधत हें । बनें ताय मंडल, महराज अउ अंकलहा अब जानही । एकमई करे म का होथे ।
कभू काल के करिन उधवा,
तेेकर कुला ल चाबिस घुघुवा,
रतीराम ह हाना सुनाके ठट्ठा करिस ।
     टूरा मन का कितिन । बाहिर भांठा जात हन कहिके सुटुर - सुटुर रेंगे ल धर लिन । उन ल जात देख के रतीराम किहिस - बाबू रे किंजर लव, बाहिर भांठा जा लव । बिहाव होइस त सब घुसड़ जाही । कहे हे नहीं - भूल गए रागरंग भूल गये छगड़ी, तीन चीज सुरता हे, नून तेल लकड़ी । हाना सुनके सकलाय मनखे मन हांसिन अउ लइका मन परागें ।
     जोरफा गाड़ी धुर्रा उड़ावत निकलिस । गांव के बाहिर पट - पर भांठा । बिसाहू फटकार दिस ददरिया ...


     गाड़ी ल फादेंव जाहंुच कहिके ,                              समधिन दगा म तंय डारे आहूंच कहिके ।
     सुनके अंकलहा हांस के किहिस - बिसाहू गाड़ी फांदे बर, डोरी बनाय बर, खटिया गांथे बर जाने । गीत ल नई सीखे ।
     बिसाहू खिसिया के पूछिस - अंकलहा, ये बिसाहू तोला गितगायन काबर किथे भई ?
     अंकलहा बताइस - महराज, ये मोला कुछ नाव नई धरही त येकर पेट के पानी नई पचय । कभू सोज नई बतइस । कभू तो अंकलहा कितिस कभू गितगायन किही - कभी किही कहा ं हे भजनहा हा ? कभू मन करही त किहि नचकहार कहां गे हे ?घर के मन हांसथें । पंथी का नाच परेंव तरा - तर के नाव धरे हे बिसाहू हा । सब नाव पंथी नचैया बर ताय महराज ।
     बिसाहू किहिस - इही ल केहे हे महराज, घिव देवत बाम्हन अटियाय । तंय हाना म मारथस । हाना म जियाथस । अन्न ही तारे अन्न ही मारे किथे नहीं तइसना बात ये । अरे भई सतनामी के संग लड़ते लड़त बाम्हन डाहर काबर कूद गेस जी ... ।  महाराज किहिस ।
     बिसाहू हांस के जुवाब दीस - महराज, हाना ताय ग । फेर एक बात हे महराज, हमर छत्तीसगढ़ म जात म किबे त गत बनादव चाहे गत बिगाड़ दव । सबे जात उपर हे  सतनामी अउ बाम्हन । तुमन मूड़ अव महराज । जेती रद्दा रेंगा दव । तुहर संख्या कमती हे । फेर जतका हे एक एक झन लाख के बरोबर । गांव भर बर एक्के बाम्हन काफी । महराज किहिस - ले कहां के बात ल काहं लाने बर बिसाहू ल किदे । अरे भई ठीक हे बाम्हन बड़ गुन्निक फेर हमर संग सतनामी के नाव ल सरमेट्टा केहे । तैं उंकर नाव काबर लेस बिसाहू ।
     बिसाहू किहिस - महराज तुमन सबले उप्पर माड़े हव । सतनामी चपकाय हे सबले तरी म । सदा दिन ले । अइसे जोखा मड़ावव के तरी ऊ पर के भेद मेटा जाय। नहिं ते सेषनरायन मंुड़ ल हलाथे त भूडोल आथे

नहीं । महराज जब तरी डाहर के सेषनरायन मन हाल पारही त छत्तीसगढ़ देस के का हाल हो जाही । छर्रीदर्री हो  जाही । तेकर सेती किथवं समे      हे । समे के पहली सम्हल जाना चाही ।
     रघोत्तम महराज किहिस - वाह बिसाहू, घनाराम मंडल के गाड़ी चलात चलात तहूंू बड़ गुन्निक होगेस भाई । बड़ जनिक बात केहे बिसाहू समझे के बात ये।
     घनाराम किहिस - समझाबो जी बाद म । पहली एक ठन डउल के गीत तो गावव  ।  का समधिन ल लेके ददरिया सुरू करेव । अरे भई, कुछ गांधी बबा के जस गावव । अभी बात चलते रिहिस के दचका म गाड़ी उदक  गे । घनाराम मडल फेंका गे । कांख के उठिस अउ खिसिया के किहिस - बिसाहू, नहर पार म गाड़ी खेदत हस । अंगरेज मन रद्दा छोड़ के बनइन नहर ल । फेर तंय अंधरा अस गड्ढा ल नई देखबे त अंगरेज का करही ।
     सब घनाराम के बात म हास परिन । रघोत्तम महराज घनाराम के कुरता अंगरखा के धुर्रा ल झाड़त-झाड़त किहिस - घनाराम भाई जी, अंगरेज मन बनइन पानी पलोय बर नहर-नाली फेर हर काम म अंगरेज मन चलाकी करें हें । गड्ढा घलो बना के गे हें । हमला गिराय बर । धुर्रा मिलाय बर । हमला इहू समझे बर चाही । घनाराम किहिस - सिरतोन बात ताय महराज । देख भई ओ दिन कड़क्का वाला पठान मन कतेक ललइन बिचारा मन । सदा दिन के हमर एक खान - पान एक  रीत- रिवाज । संग संगवारी । तेमा कहां भिन्नाफूट के लइन लान के भाग गें, गांधी बबा के सपना पूरा होही के नहीं महराज ?
     रघोत्तम महराज किहिस - देखो जी, बिगड़इया ले बड़का  बनइया । अंगरेज बिगाड़ के मड़ाबो कहिके उदिम करिन त महात्मा जी घलो परन करे हे के नई छरियावन दंव रे । चाहे मर भले जंव । फेर भाई ल मिला के रहूं । ले चलव फेर भाई हो मिलजुल के । आगू पीछू अगोरते चलव न जी । संग देवत ।


     महराज के बात ल सुन के घनाराम मंडल किहिस - बात - बात म महराज ह गियान के बात किथे ग । देखव जी । का काहत हे । अगोरत चलव, संग देवत । आगू-पाछू ।
     माने कहूं अघुवाय के उदिम करहूं त अइसने गिरहू । अगोरत रेंगहूं त भलाई हे । पछुवाय ल अगोरे चाही जी ।
     रघोत्तम महराज किहिस - देख भाई घनाराम । हम बड़े बात नई काहन जी बड़े तुम हव, हम नहीं । बड़ भारी देस । नवा मुनी केहे गें हे मार्क्स महराज  । ओखर बात ल समझिस कोन लेनिन कथें जी । रूस के जवाहर लाल ये । गजब मान ऊं कर । मार्क्स के बात ल धरिस लेनिन अउ गांधी बबा के बात ल समझिस जवाहर लाल । त भइया हो, कहइया ले बड़े समझइया ग । मैं केहेंव तेला तंय समझे । त बड़े कोन ? घनाराम किहिस - महराज तंय ग । सब झन हांस डारिन ।
     महराज किहिस - रात भर गाड़ी रेंगिस, कुक्दा के कुकदा । अरे भई , मोर ले बड़े तुम अव जी । राम से बढ़कर राम कर दासा केहे गे हे । समझव नहीं ।
     मंडल किहिस - हमन बात म नई समझन महराज हमन गीत ल जादा समझ थन । देखे नहीं बिसाहू के  गीत कइसे चलिस त अतेक अकन बात निकल गे । लेवव फेर एकाध गीत आपके मुखारबिंद ले सुनावव       भई ।
महराज खखारिस । अऊ  सुर धर के गइस ...
धन धन बापू हमर देस ल बचाये तैं ।
तन मन धन कर अर्पन भाग ल जगाये तैं ।
एक झन सपूत तैं अपन मां बाप के,
सत्य के पुजारी अहिंसा इतिहास के ।
पंडित जवाहर लाल ल पाठ पढाये तैं ।
धन धन बापू .......... ............ ।
     गीत लम्बा रिहिस फेर दम्म ले आगे गांव पाहरा । रघोत्तम महराज

किहिस अब पाहरा म गाड़ी मोरव जी । उहें जायें बर तो निकरे रहेन । दूनो गाड़ी पहंुच गे गांव म ।
     बिसाहू पूछिस - कलीराम मंडल के घर कहां हे जी ?
     बिसाहू के बात ल सुनके गांव वाला किहिस - कलीराम अपने घर के दुबारी म तंुहर सुवागत करत हे महराज जी । उतरव जी, उतरव । गजब रद्दा देखेन भई ।
     सब झन उतरिन । कलीराम मंडल ह नौकर मन ल हुंत करइस । गाड़ी बियारा म ढिला गे । घर भर के छोटे बड़े सब रघोत्तम महराज के पांव परिन ।
     कलीराम पुछिस - जेवन आप अलग बनाहू महराज । मंय इंतिजाम कर देथंव ।
     रघोत्तम महराज रटपटाके उठ गे । किहिस - बिसाहू फांदगांड़ी चलबो, लीमतुलसी  म पसिया पीबो । जब कलीराम मंडल ल इही पता नइये के लीम तुलसी गांव म जात-पात, बाम्हन कूर्मी सब नई चलय । हम सब एक जात एक भात करे चाहत हन । त अइसन म इहां काबर खाबो जी । हम जोरे चाहत हन । इन अलगियाय चाहत हें । हम बाम्हन होके छुवा नई मानत हन, तुम मूड़ म चढ़े परत हव । समाज ल टोरे चाहत हव तुंहर का जाही । बदनाम तो बाम्हन हे - समाज बनही त हमर नांव, बिगड़ही त बाम्हन के बदनामी, तुंहर काहे ।
     का नाऊ  के करलाय, का धोबी के चिराय । चलो उठव । नई अंदाज करे पांय महराज । माफी दूहू भाई । हमर गांव के महराज जात जात मानथे । गली मं छांव पर जथे त गारी देथे । बेड़जत्ता साले हो, फेर नहवाहा रे मोला किथे । तेकर सेती कहि पारेंव महराज । कपसा के भोरहा म दही ल लील पारेंव गुरूजी । छिमा करहू । कलीराम हाथ जोर के       किहिस ।
     बिसाहू किहिस - देखो जी, हमर महराज रघोत्तम महराज काहत लागय । ये हा खाली हमर दीदी सो कपसथे । दीदी के मारे सिहरत रथे

बिचारा ह, त हमर मन करा बल करके गरजथे । लिल्ला वाला परसराम       ये ।
     रघोत्तम महराज हांस के किहिस - देख बिसाहू तोर दीदी तक के बूता मंय बनायेंव के नहीं । छुवाछुत के बात करिस ते रद्दा रंेगावत       रेहेंव । साले हो तुमन नई छंेकतेव त तुंहर बर दूसर दीदी लान डारे रितेंव ।
     सब सुनके हांसिन अउ नहाय बर बड़े तरिया डाहर चल परिन । बड़े तरिया मा सब उतरिन नहइन । फेर महराज ह एक लोटा पानी तरिया पार के बर पेड़ म चढ़इस । घर डाहर आवत आवत बिसाहू पूछ पारिस - महराज, बर पेड़ ह तो गजब घोलार वाला हे ग । बड़े होगे हे । तब ले तंय पानी रितोय । हमर गांव म घलो रितोथस का बात ये महराज ।
     रेंगत रेंगत महराज किहिस - बिसाहू, तोर परस्न गजब सुग्घर रथे जी । देख बर पेड़ ल देख । बरइयां ल देख । डारा जात हे कतेक दुरिहा । बरइयां निकल के धरती म धंसगे हे । डारा मन ल थामें हे । येकरे सेती हमला पूजे चाही । बर पेड़ के बड़े होय के कारण बरइयाँ माने जटा निकलके धरती म धंस जाथे । माने ओकर लइका हा ओला थाम लेथे । बड़े ताकत बनाथे । बाबू रे, संदेस हे येमा । जेकर नवा पिका यानी बंस यानी लइका ह अपन पुरखा ल थामही तौने सपूत ये । गांधी बबा, जवाहर लाल, शास्त्री जी, जय प्रकास बाबू  मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, हमर छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ वाला पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, ये सब                  क ायेजी । इही तो सहीं संतान कहावत हें । भारत मां के । बर ह भारत मां ये गा । ये नामी बेटा मन बरइयां आंय । गांधी बबा घलो भारत मां के बरइयां ये । तिलक जी, गोखले जी, सुभाष बाबू, भगतसिंह, आजाद, बिस्मिल सब थामत हें । जमीन म धंस के थामत हे  तब हमर भारत महतारी के रूप विराट बन सके हे । मुकुट हिमालय - सागर पांव पखारय बिसाहू किहिस - धन्न हे महराज, धन्न हे तुंहर गियान ।
     अंकलहा किहिस - अगर इही बात ल हमर गांव भर के लइका सीख लंय महराज अउ थाम लंय अपन बाप-ददा के बांह ल त कतेक

सुग्घर बनही बनौका । महराज किहिस - बस समझे के बात ये जी गुने के बात ये ।
     बातचीत करत कलीराम मंडल के घर अइन । भोजन पानी के बाद अब संझौती चलिस नाता रिस्ता के गोठ । बिसाहू अपन बेटा बर मांग लिस कलीराम के बेटी ल । कलीराम के भाई बलीराम कहिस - मोरो एक ठन बिनती हे भई । एक भाई के भार तो उतर गे । मोरो घर बेटी हे । महराज सो बिनती हे । घनाराम म५डल के बेटा बर महूं अपन बेटी ल हारे चाहत हंव ।
     घनाराम किहिस - हम पहली ले पता लगाके आय हन जी । पहरा देथन त एक रिस्ता बर नइ देतन ।
     महराज किहिस - देखो जी सब समे कराथे । समे नई रिहि त सभा कइसे जमही अउ सभा जमाना हे त समे ल साधे बर परही ।
     महराज के बात म सब हांस परिन, कलीराम - बलीराम, बिसाहू और घनाराम संग भेंटिन । सब महराज के पांव परिन । अउ अकती के भांवर मांग के लीमतुलसी के रद्दा धरिन । बीच म परिस मलपुरी गांव । अंकलहा गाड़ी मोर दिस गांव डाहर ।  महराज जान डरिस के अंकलहा अपन समधी घर लेगे चाहत हे ।
     अंकलहा के समधी बाजे राहय अतराप म । साठ अक्कड़ के जोतनदार । एक्के बेटी । का पंथी का रामधुनी, सब म अंकलहा के समधी पोसुदास के डंका बाजय । लीमतुलसी म कतको बेर पंथी नाचे बर पोसूदास के दल आय हे ।
     महराज हा पोसूदास ल चिनथे । ऐसो पोसूदास अउ अंकलहा समधी बनहीं पोसूदास के बेटी ल मागे हे अंकलहा ह ।
     पोसूदास के घर आ गे । पोसूदास के पंथी म दू मांदर बाजथे । सगा मन के पांव पखार के अंगना म बइठारिन अउ पंथी दल के गीत सुरू होगे ... ।
मोरे फुटे करम आज जागो हो गुरू,


मोर अंगना म आइके बिराजहो न,
गीत के बाद सब मिलिन भेंटिन ।
     पोसूदास पदीना के सरबत बनाके लानिस । लानिस तीने       गिलास । घनाराम, अंकलहा अउ बिसाहू बर । अंकलहा जान डारिस के पोसूदास हा महराज बर काबर नई लानिस । अंकलहा महराज डाहर देख के कठल गे । ओकर हांसी ल सुन के पोसूदास किहिस - समधी महराज का अनित होगे जी, कइसे हांसथव ।
     अंकलहा किहिस - जिहां जाथे तिहां हमर गुरूजी ल भूखन राखे के उदिम करथें जी सब । न कोनो खाय बर दंय न पानी पिये बर । सजा होगे हे गुरू बर तो ।
     पोसूदास किहिस - देखव जी, ठट्ठा मत करव । महराज घर म बिराजगे । हमर धन्न भाग । डा.  खूबचंद बघेल तंुहर लीमतुलसी गांव म आय रिहिन हमंू गे रेहेन । ऊं च नीच नाटक देखेन । फेर एक घांव म पेड़ ह नई कटावय रे भाई । केहे के आन करे के आन ग । कतको होगे त बाम्हन बैरागी बाम्हने रिही । हम कइसे एकमई कर देबो जी ।
     महराज खटिया ले उठ के किहिस - बने काहत हस पोसूदास । पुरखा मन जऊन लात मारे हे तुंहर पीठ म तेकर घाव अतेक जल्दी नई भरय भाई । अरे, पाहरा के उपरोहित महराज ह आज ले झझकत हे बुजा हा । तेकर ले लगे गांव ये मलपुरी । त झाप तो लगवे करही । तोर गलती नोहय, तोर दांव बने हे बाबू । फेर मे ह जात खातिर बिन पानी के परान नई तियागंव । लान तीनों गिलास ल मैं पीहूं तब ये सारे मन के पारी आही... काहत महराज पिये लगिस सरबद । पोसूदास बोट-बिटागे । पांव ल धर लिस । किहिस -
तहीं हमर बर गांधी महात्मा,
तहीं ह सुन्दर लाल ।
तोर कोरा के हम सब लइका,
हमला गुरू सम्हाल ।


     सरबद पी के सब निकरिन गांव बर । महराज किहिस - ये सों ठउका जोखा माड़िस जी । मंय अपन बाबू दानी के बिहाव मड़ा लेंव । तंुहर बाबू मन के सब बिहाव माड़ गे रे भाई । फेर एक ठन फिकिर हे रे भाई हो । तुंहर संग मंय गेंव । अब तुम चलव मोर घर पहिली ।
     काबर महाराज बिसाहू पूछिस ।
     महराज किहिस - बात अइसे ये जी कि दानी फट रोम दे हे । बिहाव नई करंव किथे । ओती समधी अलग परेसान हे । तुमन ओकर ममा अव भाई हो । चलव समझा दुहू ।
     सब सन्नागें ।
     गाड़ी पहिली महराज घर रूकिस । बाई रोवत घर ले निकलिस । सब पांव पैलगी करिन ।
     बाई किहिस - बड़ मुस्कुल म दिन पहइस रे भई हो । तुमन गे हव तबले  दानी रो रो के काहत हे ममा मन आही तब मोला बैराग लेना हे । सभा, संतू, समेलाल सब के बिहाव होत हे । सब बाल बच्चेदार बनंय । गृहस्थ बनंय । मय बिहाव नई करंव । बरमचारी रिहूं अउ भागवत बाचहूं । अउ किथे के कोनो मोर बिहाव करहू त फांसी लगा लुहूं । रघोत्तम महराज अकबकागे । बलइस दानी ल अऊ पूछिस ।
     दानी किहिस - दीदी काहत हे तऊ न सिरतोन ये बाबूजी । मंय बिहाव नई करंव । कर दिहू त जी के नई रांहव । आपघात कर लुहूं ।
     रघोत्तम महराज रटपटा के उठ गे । अपन बेटा दानी के हाथ ल धर लिस । मनइस - पथइस । फेर दानी टस ले मस नई होइस त किहिस - देख बेटा, मंय समझ गंेव । तोर परन हे पक्का । अरे बिहाव तो सबो करथें । भागवत पुरान बांच के जग म नाव कमाय बर तंय बरमचारी रहना चाहत हस । धन्न हे मोर भाग । मंय समझा लुहूं सब ल । अतका परन सुनिस त घनाराम मंडल किहिस - महराज भांचा के भागवत आसरम खोले बर तीन अक्कड़ खेत मय दे दंेव ग । जब अतेक बड़ बाना हमर भांचा उठा लिस । किथे नहीं गुरू के बाना बांध लिये बाना जी, गुरू के बाना बांध लिये बाना । गीत हे तउन बात ये । महराज तंय येकर पिता अउ गुरू दूनो अस ग ।
     रघोत्तम महराज के आंखी म आंसू आ गे । दानी अपन सियान रघोत्तम महराज के पांव परिस अउ किहिस - बाबूजी, आज ले तंय मोर गुरू अस गा । भागवत बांचे बर सिखोबे । अब मैं घर म नई राहंव । पन्दरा दिन मंदिर म रिहूं । फेर देखे जाही । चिंंहुर उड़ गे । गांव भर म हल्ला मच गे । दानी के बात सुन के महतारी पछाड़ खा के गिर गे । मगर दानी नई मानिस । नहा धोके तियार तो रिबे करे रिहिस । खड़ऊ पहिर के एक ठन बंडी अउ पटकू भर म दानी घर ले निकलगे । हाथ म पुरखऊ ती के भागवत, अउ बिसनू भगवान के मुरती ।
     गांव के मन जुरियागें । महराजी पटैल अपन खंजेरी दल लेके आगे । पिड़हा मा खड़ाकर के दानी के पांव सब पखारिंन । महतारी सिबतरी रोवत रोवत आरती उतारिस अउ घर ले मंदिर बर निकलगे दानी महराज ।
     महराजी के दल बिधुन होगे गाय लगिस गीत ...      
अटा-टूट अंधियारा अवधू,
अटा - टूट अंधियारा,
कोई जाने न जानन हारा अवधू,
अटा-टूट अंधियारा ।
     लीमतुलसी गांव म सुख अउ दुख संघर गे । येती मंसा, संतू अउ समे के बिहाव माड़गे ओती गांव के उपरोहित रघोत्तम महराज के बाबू दानी बैराग ले लिस।
     सब गंज समझइन । फेर दानी सुनबे न करे । घनाराम मंडल बिसाहू अउ अंकलहा फेर महराज घर अइन । सबो किहिन - देख महराज, आजो कांही नई बिगड़े ये । मना-पथा लेतेन भांचा ल । तंय चलतो ग मंदिर ।
     महराज किहिस - अलकर के धाव अउ कुराससुर हे बइद कस किस्सा ये जी । मोर बेटा अउ महीं समझाहूं । अरे, समझायेंव तब तो बरमचारी बनगे ।
     अतका बात ल सिबतरी बाई सुनिस त दम्म ले आके खड़ा  होगे । रोनहुत सिबतरी किहिस - याह का केहेव महराज, बेटा ल तुम बरमचारी बनायेव । मोला धोखा म डारेव । तुंहर करनी ये सब हा...
     अइसे कहिके रोय लगिस ...
     मय का करि डोरंव दानी, मोर कोरा सुन्ना होगे बेटा,
     रोना थमिस त महराज समझइस - देख सिबतरी । तंय सदा दिन के मुरूख।
     फफकत सिबरती किहिस - मुरूख रेहेंव तभे तो तंुहर संग      निभगे । गियानी गुन्निक होतेंव त काबर ये दिन आतिस । तुम नाचा पेखन लिल्ला नाचा करके जिनगी भर धुर्रा डारेव मोर आंखी म । अब बुढ़ौैती म बेटा ल सन्यासी बना देव । कोन जनम के पाप करे रहेंव बेटा रे ... ।
     फेर रोना सुरू होगे । महराज किहिस - इही ल केहे गे हे साले हा, एक तो गड़न्निन तेमा लसुनखाय । एक तो ये हा सदा दिन के    रोनही । तेमा बेटा परागे । अरे चुप तो राह सिबतरी । तोर भाई मन आंय     हें । कुछु उदिम करही । अभी बात अउ बाढ़तिस तइसने दम्म ले नारधा वाला रामसरण उपाध्याय पहंुच गेें - समधी मन आवत हें, काहत सिबतरी घर डाहर चल दिस । रघोत्तम महराज बइठारिस अउ चुप मुंड़ ल तरी डाहर करे बइठ गे । रामसरन उपाध्याय नारधा वाला बड़ चटघौला । किहिन - देखो समधी महराज...
बिधि ने जो खुद लिख दिया
छटी रात के अंग
राई घटे न तिल बढ़े
रह रे जीव निसंग
     दानी ल चढ़े हे नसा । ठीक हे । हम हार नई मानन । हम सब सुन डारेन । हम ये घर म बेटी हारे हन । दानी ल मान लेन दमाद । मान लेन त मान लेन । हम मनाबो। सब खेल ताय । सन्यासी बन के डिरामा बाम्हन

पूत नई करही त का कुरमी तेली के बेटवा करही । अरे ये सब चलथे । केहे गे हे ...
जो लरिका कछु अचगरि करही,
गुरू पितु मातु मोद मन भरही ।
     लइका ह जांघ म हाग देथे त जांघ नई काटंय धो लेथे महराज, ले चलव फेर चली मंदिर । पंथी गीत चलथे नहीं ...
अपन घर ही के देव ल मनइबो,
मंदिरवा म का करे जइबो ।
     ये हा सतनामी मन के गीत ये । हम आन बाम्हन । हमर गीत उल्टा रथे...
अपन घर ले भगा गे हे लइका,
मंदिरवा म जाइ के मनइबो ।
     दुख के समे म घलो सब हांस परिन । बिसाहू किहिस - नारधा वाला उपाध्याय महराज कबिता बनाथे अइसे सुने रेहेन भई । आज पांच परगट देख लेन अच्छा ससुर पाये हे भई हमर भांचा दानी हा ।
     नरधाहा महराज कहां चुप रहने वाला हे । दे दिस नाहला म दाहला- भांजा पाय हे ससुर अउ भांचा के ममा मन पांय हे ठोस लगहा भांठो.. ।
     बिसाहू का कितिस । हांस के रहिगे । चाह पानी भीतर डाहर ले आगे । तब महराजी पटैल के दल पहंुच गे । सब फेर निकरिन मंदिर बर । दानी मंदिर म पूजा पाठ करके बइठे रहय ।दल पहुंचिस । दानी टप्प ले नारधा वाला उपाध्याय महराज के पांव परिस । सबला नीक लागिस । रघोत्तम महराज बिसाहू के कान म फुसुर-फुसुर किहिस - त ये खेल ह ये साले नारधा वाला उपाध्याय के जमाये ये । टूरा ह पांव पर दिस । माने ससुर ल ससुर मानत हे । अउ संन्यासी अलग बने हे । धन्न हे रे अजाद भारत के नौजवान ।
     बिसाहू रघोत्तम महराज ल चुप करइस ।
     महराज किहिस - बात गोठ बाद म करिहँव । पहली एक गीद हम

ढिलबो । तेकर बाद चदबत्ता करहू । गीत सुरू होगे...
भले बिराजे हो जगन्नाथ उड़ीसा म,
स्वामी जी तुम भले बिराजे न ।
काहे छोड़े मथुरा नगरी, काहे छोड़े कांसी,
झारखंड म आये बिराजे बिंदिराबन के बासी
ठाकुर भले बिराजे ।
उड़िया मांगे खीचड़ी, बंगाली मांगे भात,
साधू मांगे दरसन प्यारे दरस महापरसाद ।
ठाकुर भले बिराजे ।
नील चक्र म धजा बिराजे, मस्तक सोहे हीरा,
ठाकुर आगे दासी नाचे, गावे दास कबीरा । गावे दास कबीरा ।
गावे दास कबीरा ।
गावै दास कबीरा जी, गावै दास कबीरा ।
     गीत खतम होइस । उपाध्याय महराज किहिस बेटा दानी, तोर परन पूरा होगे । तंय केहे रेहे सन्यासी बनहूं त बन गेस । एक हफ्ता के तपसिया बहुत होथे बेटा एक घड़ी या दो घड़ी, पुनि आधों के आध, तुलसी चर्चा राम के कटै कोटि अपराध । दाई ददा सब दुखी हें बेटा । गीत देख कइसे निकरिस । काहे छोड़े मथुरा नगरी काहे छोड़ेे कांसी । झाड़ झंखाड़ के बीच सात दिन बीत गे बेटा, सन्यास के समे पूरा होगे । अब गृहस्त के समे आगे बेटा चल । मोर एके ठन बेटी राधा, बीस अक्कड़ खेत । तोर- सास नइये । तंय जउन फट रोमे हस तेकरो खबर हे मोला । आज बताय देथंव महराज । दानी ल डर रिहिस के बेटी ल बिदा करके मंय अपन बर तिपोइया लान परहूं कहिके । बीस अक्कड़ खेत, राज रसियत के नवा मालिक लान परहूं कहिके  डर्रा गे रिहिस । खबर दीस के बिहाव नई करंव । सन्यासी बन जाहूं । राधा करा खबर दे दिस के जब तक बाबू परन नई करही के दुसरइया बिहाव नई करही तब तक सन्यासी     रिहंू । आज मंय नारधा वाला रामसरण उपाध्याय मंदिर के आगू सब झन

के गवाही म परन करथंव के राधा बर दूसर महतारी नई लानंव । धन दोगानी सब राधा अउ दानी पाहीं । मैं अब बांचे जीवन म बरमचारी रिंहू । रघोत्तम महराज फेर बिसाहू के कान म किहिस ले अब टूरा ह संसार डाहर ढकलइसे, त ये सारे उपाधे ह सन्यासी होय चाहत हे । बरमचारी बनहूं काहथे नकटा साले हा ।
     बिसाहू महराज ल चुप करइस । दानी परन ल सुन के फेर टप टप अपन ससुर के पांव परिस अउ बिसनू भगवान के मुरती, भागवत पुरान ल फेर सकेल के गांव आय बर तियार होगे ।
महराजी पटैल फेर गीत सुरू कर दिस ...
दुलहिन गावव मंगलाचार,
दुलहिन गावव मंगलाचार,
हम घरि आये हो राजा राम भरतार,
दुलहिन गावव मंगलाचार...
तन रत करि मैं मन रत करिहंव पंचतत बराती,
रामदेव मोर पाहुने आये, मैं जीवन में माती,
सरीर सरोवर बेदी करिहूं, बरमा वेद उचार,
रामदेव संग भंवर लैहूं, धनि धनि भाग हमार ।
कहैं कबीर हम व्याहि चले हे, पुरिषु एक अविनाशी ।।
दुलहिन गावव मंगलाचार,

दुलहिन गावव मंगलाचार ।

2 comments:

ईश्वर साहू बंधी said...

बहुत सुन्दर महोदय जी 👍

BIRENDRA SAHU JI said...

छत्तीसगढ़ी बोली भाखा म अतेक सुघ्घर रचना ल पड़ के मन बहुत आनन्द विभोर होगे। अतेक सुघ्घर रचना बर आप ल कोटी कोटी बधाई एवं शुभकामनाएं

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