सात


रघोत्तम महराज का गीस, लीमतुलसी गांव सुन्ना परगे । महराज राहय त कुछू न कुछु खटपटखइयाँ चलते रहय । जड़काला भर रमायन, चौमासा म आलहा, फागुन लगिस तहां नाचा के पुरोगिराम । कोनो बछर तरिया के लद्दी हेरवां दयं । कभू रटाटोर पेड़ लगवावय । कोन जनी कोन माटी के बने रिहिस रघोत्तम महराज । मनहरण ओकर पक्का चेला । लीम चौंरा म संझोती बइठे रहंय दस पंद्रा झन किसान । मनहरण किहिस- मोर कविता ल कोन सुनही ग । कोन हे कबिता के समझइया । चल दिस महराज फुफा ह । अब ओकर सुरता म रोवत हे कबिता ह ।
     बिसाहू किहिस - देख मनहरण जब ले पिरथी बने हे कबि अउ कबिता के सुनइया आत जात हेंे  ग । हम सुनबो । हमर गुरू रघोत्तम महराज कबिता सुने के लइक बनाके गे हे । कबिता कहना कठिन हे, ओकरो ले कठिन हे ओला सुनना, ओकर ले कठिन गुनना अउ बाबू रे सबले कठिन हे सही मरम ल पाना । जब सही कबिता के सही अरथ समाज वाला मन, देसवासी मन लगा लेथें त देस ह सोन के चिड़िया होजथे । मनहरन, कबिता के अरथ जहां नई समझे जाय तहां हो जाथे बंठाढार । हमला कहि के गे हे रघोत्तम महराज । तंय संसो झन कर        बाबू । सुना कबिता, हम सुनबो, गुनबो अउ सही अरथ ल धरबो,           सुना ।
मनहरण राग धर के सुनइस गीत ...
धन धन फू फा हमार रे भइया,
धन धन फुफा हमार ।
पंडित, गुरू लीमतुलसी के,
हमला तहीं उबार,
धन धन फुफा हमार ।
          गांव में लिल्ला नाचा कराये,            

सबला संग संग तहीं चलाये,
ऊं च नीच के भेद मेटाये,
बहुत करे उपकार,
संगी, धन धन फुफा हमार ।
छाहित करही जगन्नाथ जी,
सुनही ओहर हमार बात जी,
हमू खवाबो दार भात जी,
लगही जब दरबार,
रे भइया पंडित फुफा हमार ।
जगन्नाथ ल गांव में लॉनव,
गुरूबानी के मरम ल जॉनव,
मानव तेला कभू झन सानव,
भला करय करतार,
रे संगी पंडित फुफा हमार ।
     कविता सुना के मनहरन चुप बइठगे । दुनो माड़ी म मुंड़ मड़ाके सुसके ल धर लिस । बिसाहू किहिस मनहरन हम समझ गेन रे तोर कबिता ल । तयं काहत हस के जगन्नाथ जी सो मिल े ल निकरिस महराज ह अउ रद्दे म सकलागे त गांव म अब जगन्नाथ जी ला लाने जाये । तभे हम गुरू के करजा छूट पाबो ।
     हव उहीच बात ये काहत मनहरणन बिसाहू के पांव ल धर         लिस । धर लिस ते धर लिस । बिसाहू लाख झटकारिस फेर वाह रे मरहरन छोड़वे न करय देखो देखो होगे ।
     अंकलहा किहिस -बिसाहू अइसने ल कथे...                                                  बाप देखा नई ते पिंडा परा ।
     तंय ये टूरा ल चढ़ाय । ले तोर पांव ल छोड़ते नइये । बइहा के बल गजब रथे । बइहा तेमा कबी । एक तो कबिच के बल म बड़े-बड़े थर्रा जथे तेमा बइहा । माने अब का पूछना हे । केरा तेमा गुरपागे ।


     येमा, संतू अउ सबे संगवारी हांसे लागिन । कोनो खबर दीन तब दानी महराज अइस । दुख म घलो दानी महराज ल हांसी आगे । किहिस ममा । काय धर लेहे ग । याहा का गज अउ ग्राह के लड़ई ये भई ।
     बिसाहू किहिस - भांचा तहीं मोर बर बिसनू भगवान बन जा ददा, छोड़ा टूरा के पकड़ ल । धर लेहे मंगर सांही ।
     सब झन गजब हांसिन ।
     बिसाहू किहिस - भांचा महराज के सुरता म जगन्नाथ के मंदिर बनवा कहत हे ग । मनहरन ह छोड़त नई ये ।
     अभी अउ कांही कितिस तइसने बिसनू दाऊ  आगे । सब झन बतइन के मनहरन कबी ह का चाहत हे । बिसनू दाऊ  किहिस-मनहरन मैं बनवाहूं रे जगन्नाथ जी के मंदिर । ले छोड़ दे बिसाहू ल ।
     मनहरण किहिस - चढ़ा दस अक्कड खेत । तभे छोड़ हूं ।
     बिसनू किहिस - बाबू रे, तंहू का सुरता करबे रे । चढ़ा दंेव । बारा अक्कड़ खेत चढ़ा दंेव रे । बनही जगन्नाथ जी के मंदिर अउ सुन, कबी सम्मेलन घलो होही रे ।
     अतका सुनना रिहिस के मनहरन बिसाहू के पांव ल छोड़ दिस अउ उठ  के किहिस - मोला झन भुलाहू । महूं सुनाहूं कबिता ।
     बिसाहू किहिस - सुना लेबे मोर बाप, फेर एक ठन ल सुना के बारा अक्कड मांग लेस । अउ सुनाबे त गांव मांगबे रे । तंय तो बामन अवतारी हो गए रे मनहरन। मनहरन थपड़ी पीट के हांसिस अऊ किहिस
     ... माने के कबि माने का ? अवतारी पुरूष अउ का ।
     समय जात नहिं लागहिं बारा, दानी अपन दाढ़ी ल छूके        किहिस । बुढ़वा बिसाहू कान ल टेंड़ के किहिस - का भांचा बियारा जानाहे ग । धान तो मिंजागे ग।
     दानी किहिस - ममा, ले तहूंू ऊं चहा सुने लगे ग । मंय केहेंव ममा, समय जात नहीं लागहिं बारा ग - देख न का के का होगे । तुंहर कोरा म खेलेन हम । हमू मन देखते देखत अब बाल बच्चा वाला            

होगेन । इही ल केहे जाथे  एक ले अक्कइस । हमर समेलाल ह अब बड़े साहब होगे ममा । कइसे बुलक गे आठ दस बछर जनाबे नई करिस । समे के साथ भाई समेलाल घलो बाढ़ गे । पहली दुरूग के जिला साहेब मेर बाबू रिहिस । उहें अउ पढ़िस ग । अब बड़े साहब होगे । आज आय हें गांव म । काहत हे के लीमतुलसी म घंलो इस्कूल खोलना हे । बिसाहू किहिस - देख भांचा, हमर गांव के मन सब नंदौरी म पढ़े हें ग । उहां बइद गौटिया रिहिस तेहा एक झन अंगरेज तसीलदार के बाई के इलाज कर दिस । बाई चंगा होगे । अतराप म बइद गौटिया के नाम राहय । अंगरेज किहिस का मांगना हे मांग । बइद गौंटिया किहिस-निपढ़ हे गांव के मनखे मन । धन मांगहूं साहेब त सिरा जही । केहे के कबी हा ...
     सुरसती के भंडार के बड़े अपूरब बात, ज्यों खरचे त्यों त्यों बढ़े बिन खरचे घट जात । माने के एक खजाना अइसन के जेला जतके खरचा करबे वोहा ओतके बाढ़ही । माने के सरसती दाई के भंडार । त हमर गांव में इस्कूल खोल दव ।
     बइद के बात ल सुनके अंगरेज हांसिस । किहिस - तभे तंय रोग के दवा करथस । सबले बड़े रोग अज्ञान । ओला तंय बने करे चाहत हस ।  जा खोल देवं इस्कूल । अउ खुल गे ग । अंगरेज मन जऊ न काहंय तैसने करंय ग । जबान के पक्का राहंय बुजा मन । उही बइद गौंटिया के खोलवाय इस्कूल म हमर अतराप के सब पढ़िन । कतको झन मास्टर, पटवारी          बनिन । भाग खुलगे अतराप के मनखे के ।
     दानी कीहिस - ममा हमार भाई समेलाल ह ग इस्कूल खोलवाय के मंजूरी लाने हे । येसो हमर परछी म लइका मन पढ़ही । तहां जूर मिल के बनवा लेबो इस्कूल । नंदौरी म भरती होय हे तेन लइका मन के नाम कटवा के इहां नांव लिखाना हे । आजे खुलही इस्कूल । अभी बात चलते रिहिस के समेलाल आगे । आके बिसाहू के पांव परिस अउ किहिस - कका, मंय साहेब होगेंव ग । मिल भिड़के लीमतुलसी म इस्कूल खोलवाय के आडर लाने हंव । संब जुरियावव, लिल्ला चौरा म ऊ हें सब बताबो ।


     दानी, संतू, अउ सबो जवान अपन अपन लइका मन ल लेके पहंुचिन ।
     समेलाल ह सब लइका सियासन ल बतइस - लीमतुलसी म हमर अब इस्कूल खुलही । अउ अब दू खुसी के बात हे । एक तो हमर गांव म भगवान जगन्नाथ के मंदिर बनके तियार होगे हे । दूसर गांव भर के मिलजुल के करबो इस्कूल तियार । लइका मन तो अभी दानी महराज के परछी म पढ़हीं, गुरूजी मोर संग आये हें । इहें रिहीं । इंकर खियाल राखना हे, सब हमला-तुंहला ।
     अंकलहा किहिस- मंय अपन तीन अक्कड़ के भांठा जमीन इस्कूल बनवाय बर दे देंव । फेर एक हथजोरी हे । इस्कूल के नाम होही रघोत्तम इस्कूल, तभे देहंू ।
     गांव भर के सब वाह वाह करिन । समेलाल किहिस - अंकलहा कका, पक्का गांधी जी के चेला ये । हमर सियान के  दोस ये । बिसाहू कका अऊ  इंकर जोड़ी जग जाहिर हे । देखव तो दुनिया भर म लोगन दान करथे त अपन दाई ददा के नाम म करथें । वाह ग हमर कका तंय करे तो रघोत्तम महराज के नाम म ग । भई ये हमर गांव बर बड़ महत्तम के बात ये । मंय चाहत हंव के अंकलहा कका दू शब्द आके इहां आसिरबाद      दंय ।
     अंकलहा अइस अउ पहली जय बोलइस - बोलो गुरू  बाबा घासीदास की जय, महात्मा गांधी की जय । रघोत्तम महराज की जय । सब संतन की जय ।
     ये तरीका ले जय बोलाय के बाद अंकलहा किहिस - हमर सतनाम पंथ म सबले बड़ेे गुरू के महिमा हे । सबे पंथ म हे । गुरू बरम्हा गुरू बिसनू, माता पिता सब तो गुरू माने गे हे । हमर गांव के गुरू रिहिन रघोत्तम महराज । जउन ह हमर अस मुरूख मन ल कलाकार बनइस । सिच्छा के घर इस्कूल म लइका  मन पढहीं । गुन्निक बनहीं । जउन इस्कूल हे तेहा हमर गुरू रघोत्तम महराज के नाव म रखे जाना उचित हे ।

देखते देखत दस बछर बीत गे । का के का होत जात हे । हमर गांव म भाई बिसनू  के किरपा से भगवान  जगन्नाथ के मंदिन बनगे हे । हमर गुन्निक बेटा समेलाल के परयास ले इस्कूल खुलत हे । छाहित हे गुरू रघोत्तम महराज हमर उपर । हमरे  लइका मन अब सियान होगें । हमन होगेन उकर लइका अस । गांव अब तंुहर हाथ म हे । जस अपजस सब । ये गुरू रघोत्तम के गांव । येला सदा दिन सम्हार के राखहू- काहत अंकलहा रोय लागिस । दानी महराज उठके गीस तीर म । उहू ल रोवासी लागे लागिस । किहिस - ममा, तुंहर देय सिच्छा अबीरथा नई जाय ग । अभी हमर मंूड़ म तंुहर हाथ हे ग । रद्दा नई भुलावन ।
अचानक मनहरन, जय बोलाय लगिस,
बोलो लीमतुलसी गांव की जय ।
रघोत्तम महराज की जय ।।
     आखिरी म बिसाहू बोलिस - हमर गांव म इहां के माटी म गजब गुन हे । गुरू रघोत्तम महराज के पुन्न परताप हे सब आसिरबाद हे । हमन अब होगेन सत्तर बछर के । हमर लइका मन सब जवान होंगें । हमर जाय के बेरा हे । रघोत्तम महराज काहय - जिये के संकलप होथे मरे के              तियारी । मरे के तियारी उही मनखे ह करथे जउन के संकलप लेके बने जीथे । त रघोत्तम महराज के बताय रद्दा म हम चलत आय हन । अउ देखो हमर गांव म इस्कूल खुलगे । अउ अठोरिया पन्दरही म भगवान जगन्नाथ के मंदिर म होय लागही पूजा । सुनत हंव के दानी महराज ह सब तियारी परान परतिस्ठा के करत हे । फेर एक बात अउ हे, हमर गांव के तीर म भेलई म लोहा के कारखाना खुलइया हे,  अइसे सुनब म आथे । गांधी जी के चेला रजिंदर परसाद  बाबू काहत लागय । हम देखे रहेंन एक दारी । गजब विद्वान । रघोत्तम महराज बतावय के  ओकर गणित के जऊ न जुवाब हवय तेहा कलकत्ता के इस्कूल म धराय हे आजो । गुरूजी हा लिखिस के चेला हा गुरू ले बढके हे । धन्न हे रे विधाता के कारबार । ओकर जंचैया । अइसन मनखे हमर देस के बने हे राष्ट्रपति । ऊन हा आवत

हंे भेलई । सुनब म आये हे । ओकरे हाथ से होही उद्घाटन । चारांे मुड़ा सोर हे । येती हमर गांव म इस्कूल खुलत हे । त कस न हम जाके बात कर लेवन रजिन्नर बाबू से । बतई के हमू मन चेला आन रघोत्तम महराज के । जउन तिरपुरी कांगरेस म गीन लीमतुलसी ले । तो हमरो गांव के इस्कूल के उद्घाटन जौन हे तौन रजिन्दर बाबू करही । काबर के उहू गांधी जी के चेला अउ हमर रघोत्तम महराज जऊ न रिहिस उहू रिहिस गांधी जी के चेला । माने रजिन्दर बाबू हमर गुरू भाई त हमर बात ल मानही अउ लीमतुलसी आके येकरो उद्घाटन करही । कतेक दुरिहा हे । ये दे तीन कोस भेलई । कोन ओला रेंगत आना हे । भेलई म उद्घाटन कर दिही अउ फेर आ जही लीमतुलसी । इस्कूल के जगा म दू कुदारी मार दिही । बस अतेक मोर तुंहर ले बिनती हावय । ये ल हुकु म काहव के बिनती काहव, केलौली काहव जौन काहव ।
     समेलाल अब फेर अइस अउ किहिस - देखव ग, कका बने, काहत हे । फेर मैं हंव सहर म । थोरूक जानत हंव बात ल साहेब अंव । राष्ट्रपति माने गजब बड़ चीज । हमर नान चुक गांव म भारत देस के राष्ट्रपति नई आय सकय । भेलई आवत हे । उहें हम जाबो दरसन पाबो ।
     बिसाहू रखमखा के उठगे । हाथ गोड़ ओकर लगिस कांपे । अंकलहा ह तीर म जाके किहिस - भइया, बइठ न ग । रिसा झन ।
     अपन कोकानी लउठी म टेक के खड़ा होइस बिसाहू अउ किहिस - नई रिसाबो जी । राष्ट्रपति होगे त का अपन गुरूभाई मन ल भुला    जाही । अरे हमू गांधी  बबा के चेला, उहू गांधी बबा के चेला । माने के एके खून, एक बिचार । त आये म का, अड़चन हे । फेर इस्कूल के काम म आही अउ बस दू कुदारी मार दिही । तहां बाद में हमन उठात रिबो भितिया ।
     समेलाल अंकलहा ल अंखियइस । बिसाहू के तीर म जाके किहिस-कका, कोसिस करबो ग । हाथ जोरबो । तुंहर सब के नाव लेके गोहराबो । मान जाही त ठीक हे । लानबो । अभी जउन करना हे तेला       

करी । चलव सब लइका मन ल लेके दानी महराज के परछी म । आज ले गुरूजी गजानंद दुबे पढ़ाही लइका मन ल । हमर गांव म गुरूजी बनके आये हें । घरोघर सब पोता भेजवा दुहू । कुछ दिन बाद टाटपट्टी आही । अभी हमी मन ल सबे इन्तेजाम करे बर परही । जइसे किथे नहीं खेती अपन सेती । तइसने पढ़ई अउ बिकास के काम ये । अपन काम ल हमी ल करना हे । हमर गांव म जगन्नाथ जी के मंदिर बने हे । कहावत हमरे  अस गांव बर बने  हे ग अपन हाथ जगन्नाथ ।
     समेलाल के बात सुनके तीर म बइठे एक झन सियान किहिस - देखो जी, येकरे सेती केहे गेहे ...
पिता पर पुत्र, सवार पर घोड़ा,
बहुत नहीं तो, थोड़ा थोड़ा
     येकर बाप रिहिस गजब गुन्निक, तेकर बेटा ये समेलाल । वाह बेटा वाह, नाव कमाबे रे । जस बढ़ाबे बाप के । लीमतुलसी गांव एक दिन बनही तिरिथ - धाम ।

करी । चलव सब लइका मन ल लेके दानी महराज के परछी म । आज ले गुरूजी गजानंद दुबे पढ़ाही लइका मन ल । हमर गांव म गुरूजी बनके आये हें । घरोघर सब पोता भेजवा दुहू । कुछ दिन बाद टाटपट्टी आही । अभी हमी मन ल सबे इन्तेजाम करे बर परही । जइसे किथे नहीं खेती अपन सेती । तइसने पढ़ई अउ बिकास के काम ये । अपन काम ल हमी ल करना हे । हमर गांव म जगन्नाथ जी के मंदिर बने हे । कहावत हमरे  अस गांव बर बने  हे ग अपन हाथ जगन्नाथ ।
     समेलाल के बात सुनके तीर म बइठे एक झन सियान किहिस - देखो जी, येकरे सेती केहे गेहे ...
पिता पर पुत्र, सवार पर घोड़ा,
बहुत नहीं तो, थोड़ा थोड़ा
            येकर बाप रिहिस गजब गुन्निक, तेकर बेटा ये समेलाल । वाह बेटा वाह, नाव कमाबे रे । जस बढ़ाबे बाप के । लीमतुलसी गांव एक दिन बनही तिरिथ - धाम ।

1 comment:

BIRENDRA SAHU JI said...

गाँव के समस्या औ लोगन के मितव्ययिता के अतेक सुघ्घर रचना बर आप ल कोटी कोटी बधाई एवं शुभकामनाएं

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