तीन

     ऊं च-नीच नाटक खेलइया, साज-बाज जमइया लीम तुलसी गांव के लइका सियान सबके दुख परागे । डाक्टर साहब लीमतुलसी गांव म आइन । अतेक बड़ मनखे के पांव गांव म परिस । धन्न हे भाग । सबो झन सहरावंय रघोत्तम महराज ल ।
     डाक्टर साहब के भासन ल बेलबेलहा मंसाराम हा घोख          डारिस । मंसाराम गांव भर म कोदई मेहला कहाथे । मलक मलक के  रेंगथे । नारी परानी मन अस हाथ ल लमा के गोठियाथे । अपन भौजी मन सो पोलखा मांग के पहिर लेथे । अउ नाचा म जो कुदल्ला मारथे के का पूछना हे । मंसाराम से रहे न जाय । रजवा तेली के चौरा  म बइठे राहंय दूसर दिन दू चार बाटुर मनखे । मंसाराम अइस अउ फटकारिस भासन- जइसे गांधी महात्मा किहिस सुन्दर लाल जी मोर गुरू ये । मोर ले आगू ले करत हे हरिजन उद्धार । तइसने मैं खूबचंद बघेल काहत हंव रघोत्तम महराज लीमतुलसी वाला मोर गुरू ये । धन्न हे ये गांव ।
     भासन राहय डॉ. खूबचंद बघेल के । मेहला मंसाराम जस के तस सुना दिस । गजब हासिन सब । तब मंसाराम किहिस- मोला तुम नाचन नई देव न । फेर अंगरेज ल नचइया बबा खूबचंद कहि के गे हे । देस जल्दी आजाद होवइया हे रे बाबू । आजाद हो ही तहां बस नाचना कूदना खुसी मनाना हे । मैं तो भइया जोंग के राखे हंव अजादी अइस ते मोर नाचे के पारी जमिस ।
     बिसाहू किहिस- अरे मंसाराम, सदा के रीत ये रे । अजादी बर गांधी बबा, सुभाष बोस, भगत सिंग, चंद्रशेखर आजाद के जोगदान तो सुनबे करत हन । अउ कतको लाखन लाखन मनखे बतरकिरी अस झपागें मर खपगें । ऊं कर नाव नई जान पाबो । इतिहास म इनकर नाव नई राहय । फेर बाबू रे तोर बात सोरा आना । सदा सदा के रीत ये । मरही खपहीं पुरूषार्थं वाला मन अउ नाचहीं कूदहीं कोदई मेहला । तुंहरे अस के तो

दिन बहुरही रे बाबू । मेहला मन लिही मजा अजादी  के ।
     सब हांस दिन । मंसाराम किहिस - त गाना बने हे बिसाहू मंडल पुरूसारथ वाला मरव,
मेहला मन धरव  बिसाहू खिसियागे । किहिस - हव, ये बुजा हा धरे बर मरत हे । रहि गेस रे मेहला । का खा के हमर भौजी हा तोला बियइस होही रे मंसाराम ।
     अतका ल सुनिस ते मंसाराम हाथ ल मलकावत रेंगते रेंगत कहि दिस - तंय जानबे का खवाय रेहे तेला । मैं का जानहूं निपोर के ।
     लीमतुलसी का छत्तीसगढ़ के सबो गांव गोड़हर में कका भतीजा के गारी गल्ला के चलागन हे । ये ला ओ देवत हे वोला ये । ओकर झेल ल ये साहत हे येकर ल ओ । का करतिस विचारा मंसाराम हा कतको कका मन तो अउ लमियाथें । किथे - मसाराम, तोर दाई ल अबड़ भुसड़ी चाबिस होही रे तब तंय होय होबे रे बाबू । तभे मंसाराम नाव हे । मंसाराम खुखुवा जथे । देथे तहां ससन भर गारी - रोगहा हो, हमरेच दाई दिखथे । तुंहर दाई मन बिन चाबे कोकमे रहि गिस होही तंुहला पेट में । तुहर चौपट होय ।
     सब मजा लेथें । कुड़कथें तऊ न ल तो कुड़काय जाथे । लीमतुलसी म अकेल्ला मंसाराम ल नई कुड़कावंय । बिसाहू मंडल के दाई सियान हो गे हे । उहू ल कुड़का देथें । ओकर नाव बाढ़  गे हे कनफड़ी । टीपा भर ल बजा दे तहां देख डोकरी के गारी । जउन सात पुरखा म पानी रितोथे के कान के सबो किरा झर्रा देथे टीपा बजइया के । लीमतुलसी गांव म कोनो ठट्ठा मजाक म रीस नई करंय । अंकलहा अऊ बिसाहू नता में भाई-भाई ये । एक दारी गजब टिमाली लगइस बिसाहू हा । अंकलहा के बरे बिहाइ  ल आय अठोरिया होय राहय । बिसाहू पहिर लिस लुगरा अउ पहुंच गे अंकलहा घर गरूवारी के बेर । अंकलहा गरूआ बछरू ल बांधत राहय ।

बिसाहू नता म बड़ेे भाई । अंकलहा छोटे भाई । संग मे राहय रतीराम । किहिस - अंकलहा भैया भऊ जी के गांव जामगांव के सगा ये गा । भौजी के फूफू लाग अंव किथे । बिसाहू कलेचुप बइठ गे । अंकलहा के बाई निकलिस लोटा म पानी धर के पांव परे बर । अब बिसाहू पचधुच्चा घुंचे लगिस । अंकलहा के बाई लोटा धरे आगू आवय । डौकी के भेष धरे बिसाहू घुंचय । गजब देरी होगे त चिमनी के अंजोर म अंकलहा देख पारिस । जो थपड़ी पीट के हांसिस अंकलहा । अंकलहा किहिस - तोर फूफू नोहय जगेसरी । ये हा मोर बड़े भाई बिसाहू ये । ठगे बर आये हे । आय के ला तो आ गे बपुरा ह । अब भाइ बोहो करा पांव कस परावय । ले देख । जो भागिस बिसाहू उहां ले । आज बीस बछर होगे बात ला । अंकलहा के बाई अपन बेटा संतू ल किथे - संतराम, जा मोर जामगांव वाली फूफू  ल दे दे बेटा ।
     सुन के बिसाहू - हांसथे । अउ किथे - का बहू, तइहा के ठट्ठा ल आज ले घरे बइठे हव । लइका मन सो झन कहे करव भाई ।
     अंकलहा के बाई किथे - बाप मन करनी करे हव तेला तुंहर बेटा मन जानही तव तो बनही । अंकलहा समझाथे - देखो  जी बिसाहू भाई आगू कतेक सहन सक्ती राहय । ठट्ठा मजाक रहय । सहन-सहावन । तेला लइका मन ल जानना चाही । अब तो रे काहत थपराहे । समे खराब हे । संतराम खलखला के हांसथे अउ पांव परके किथे - बड़े ददा, एक घांव अउ लुगरा पहिर के देखाते ग ।
     ओकर पीठ म एक मुटका मार के बिसाहू किथे - वाह रे टुरा एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा आच रे बाबू । कर ले ठट्ठा । तोर टूरी होही न तब आहूं रे भेष बदल के ।
     बिसाहू के बात ताय । सब हांस पारथें । संतू तो लइका पन ले बिसाहू बड़ा संग हिले हे ।
     अब संतू अउ बिसाहू के बेटा सभाराम के गजब जमथे । जइसे अंकलहा अउ बिसाहू के जमथे तइसने संतू अउ दूनों झन के नाव घलो

धरे हे बिसाहू मंडल ह।  बिसाहू नाव धरेे म नाम कमाय हे । आधा गांव के लइका मन के नाव बिसाहू धरे हे ।
     अंकलहा जब अपन पंथी दल बर मांदर बिसा के लानिस अउ पहली घांव पंथी नाचिस त गुरू बाबा घासीदास के महिमा के गीत                गइस ...
मोर फूटे करम आज जागे हो जोगी,
मोर अंगना म आके बिराजो न ।
     गजब सुघ्घर गीत । येती नचकहार मन घर नई पहंुचिन ओती अंकलहा घर बाबू अंवतरगे ।
     बिसाहू किहिस - अंकलहा संत गुरू बाबा घासीदास जी के महिमा के गीद गायस तैं बाबू अंवतरे हे वोकर नाव रिही संतराम । मजा म हम  कहिबो संतू ।
     भला बिसाहू के बात अंकलहा कहां काट सकत हे । होते साठ नाव धरागे संतराम । सभाराम नाम के घलो किस्सा हे । गांधी महात्मा आय रिहिस रइपुर म । बइला गाड़ी फांद  के बड़े गौंटिया अऊ  घनाराम संग बिसाहू घलो रइपुर गीस । बिसाहू अस बड़ेे गाड़ीवान अतराप म      नइये । घनाराम तो किथे घलाक के भारत देस के गाड़ी हंकइया महात्मा गांधी अउ हमर लीमतुलसी के गाड़ी हंकइया बिसाहूराम । त गाड़ी बइला फंदइस । घोल - घोला बंधाय बइला उड़ियागे रइपुर बर । बड़ जनिक सभा होइस गांधी बबा के । ऊ हां ले अइस बिसाहू त सुनिस के ओकर घर बाबू अवतरे हे । ले गाड़ी ले चौपा कूद के नाव राख दिस बिसाहू ह सभाराम । सभा म गेंव बाबू अंवतरिस तेकर सेती नाव धरागे सभाराम । त संतराम अउ सभाराम के बड़ मितानी  बाढ़त जाय ।
     जुलूस मं संतराम सियानमन संग नारा लगावय अपन संगवारी सभाराम संग । बात ढिले के पहली बइठका म दूनो मितान ल देख के रघोत्तम महराज कहि दय देखो भाई संतन के सभा अउ सभा भर के संत... सब हांस परय सभा अउ संतू लजा जय ।


     संतराम, सभा अउ समेलाल कब बाढ़ गें । कब बिहाव करे के लइक होगंे गमें नई मिलिस महराज... । बिसाहू कहिस ।
     एक हफ्ता नई दिखे महराज कहां चल दे रहेव । अपने दुधरा मेड़ेसरा चल दे रेहेब का । बतायेव नही भई । महराज किहिस - मय रइपुर गे रेहेंव जी । मोर बर लीमतुलसी हा मेड़ेसरा ये । रइपुर गेंव गुरूजी के बुलौवा मं । उहां बाड़ा हे गुरू अगमदास जी के । खड़ुवा वाले गुरू अगमदास जी । देस के अजादी के लड़ई म गुरूजी अऊ मिनीमाता के गजब जोगदान हे । सब आजादी के सिपाही उंकरे घर राहंय । आंवय  जांय । गुरूजी अगमदास जी ल सब मानथें । अंकलहा किहिस - महाराज महूं जाय रितेंव, मोर सुरता नई करेव ।
     लंघिहात जाय बर परगे अंकलहा । कांकेर जाना परिस । गुरूजी के हुकुम रिहिस । काबर महाराज ? बिसाहू पूछिस । महाराज कहिस - सब बताहूं  सुनहू ते कुदे ल धर लुहू । घर म जाके घरो घर खीर रांधे बर कहि दव । तब आवव ।
     वा जब बताही महाराज तक सनने सुनन बताथे जी - घनाराम किहिस । अंकलहा फेर पूछिस-गूरू अगम दास जी तो खड़ुवा म रथे महराज कहां कांकेर के बात करथव । ले गुरूजी हा छत्तीसगढ़ ले अलख जगावत आसाम गिस । देसभर म घूमिस । असाम म तो भेट होइस हमर मिनी माता जी से । उही आज हमर गुरूवइन दाई हे । देसभर म घुमइया ज्ञान बगरइय्या गुरूजी का खंड़वा म बैइठे रिथे अंकलहा । बिसाहू कहिस - बिसकुटक म हमला हलाकान कर डरे महराज । जल्दी बता न ग । आगू का होइस । महराज किहिस - बात अइसन ये बिसाहू के दुर्ग कोंदल गांव हे - कांकेर मेर । उहें जनमिस इन्दरू केंवट । गांधी जी के जबर चेला । दुरूग म गांधी जी अइस त इन्दरू केंवट दुरूग अइस रेंगते रेंगत । गावत बजावत । उही हा गुरू अगमदास जी ल बलाय रिहिस । सनमान करे      बर ।
     घनाराम ल अब थोर थोर गम मिलिए । किहिस - त उही सनमान

के कारबार में आप गे रेहेव महराज । हव - महराज किहिस । का होइस उहां ग - बिसनू तिखारिस । महराज बतइस - उहां आदिवासी नेता कंगला मांझी अपन सिपाही लेके पहुंचिस । देखनी होगे । जिहां देखते उहें           मनखे । जंगल म होइस जी सभा । एक ठन आमा के पेड़ हे जंगल म । ओला झंडा आमा केहे जेथे । नदी के तीर म हे पेड़ ह । उहां लगिस       मेला । उहें गुरूजी के सब सनमान करिन । छत्तीसगढ़ भर के सब बड़े नेता  पहुँचे रिहिन । कतेक झन के नाम बतावंव । फेर ये बतावव के तुमन काबर जुरियाय  रेहेव । पहली तुम बतावंव । तब आगू के बात मय लमाहूं ।
     तंय बता घनाराम मंडल । बिसाहू ह थोरे खाय बहुते डकारे वाला ये । जल्दी नई सकेलय बात ला तंय बता काबर सकलाय हव ।
     सियान मन रघोत्तम महराज ल किहिन । अऊ पूछिन
     सबो लइका सियान जुरियाय राहंय । महराज ल किहिन - बिहाव मंड़ाय चाहत हन महराज । तंुहर आसिरबाद चाही भाई । महराज किहिस - देखो जी, बिहाव करहूं थोरूक रूक के । बड़े खुसखबरी सुनव । हमर देस अब आजाद होगे । हम बन गेन राजा । हमर राज चलही । हम चलाबो जुरमिल के देस ला ।
     बक्खागें तीनों संगी । गांव भर म खभर फइल गे । जंगल म ढिलाय आगी अस बगर गे ये खबर, के हम होगेंन राजा । देस अजाद होगे ।
     लीमतुलसी, ढाबा, चेटुवा, गोढ़ी के सियान सकलइन । संझौली बेरा बइठका होइस । रघोत्तम महराज बतइस के देस तो होगे अजाद फेर दू कुटा होगे ।
     काबर ? कंडरका गांव के सजर अली पूछिस ।
     रघोत्तम महराज किहिस - अइसन बात ये सजर । तंुहर सगा मन अलग देस बर झगरा मता दिन । का करय गांधी बबा । किहिस मोर लास उपर बनही पाकिस्तान ह । फेर मानय तब । जिदिया गंे । अब पाकिस्तान तंुहर बर अउ भारत देस हमर बर ।
     सजर के संग म रजब अली, सत्तार मियां, बसारद खान सबो

कंडरका वाला मन अकबका गंे । पीर अली सियान राहय सब ले । पूछिस - महराज, का बतावत हव भाई । हमर तुंहर ये कहां ले आवत हे । हमर तुंहर दुनों के तो एक लड़ाई, एक देस, एके मितान, एके दुस्मन । याहा का बतावत हव महराज । गजब दुख लागे अस करत हे हमला भई ।
     नंदौरी गांव के भीखम गौंटिया उठिस । किहिस - देखो जी, हम उही बात बर सकलाय हन । रघोत्तम महराज बलाय हे हमला । देस अजाद होगे । येला अजाद करे बर हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई सब झन गजब लड़िन । मिल जुर के ।
ईश्वर अल्ला तेरा नाम,
सबको सन्मति दे भगवान ।
     गांधी जी के मन के गीत ये । त तुंहला डर्राय के बात नोहय, बात ल बताही महराज ह ।
     रघोत्तम महराज बतइस । देखव भाई । अतराप म एक दू गांव म दू चार घर के मुसलमान हें । इसाई कोनों गांव म हे कोनो कोनो म नई      ये । डोंगरगढ़ , रइपुर, राजनांदगांव जाथन त सिक्ख भाई मन दिखथें । बड़े जान पागा बांथे रथें । मारवाड़ी मन लपेट के ठिल्ला बांधथें, सिक्ख मन चमाचम । कटार अरोथंे । त ये सब झन जऊ न भारत माता के बेटा ये ते मन मिल जुल के अजाद करिन देस ल । अब का करे जाय । बनत ल अंगरेज नई देख सकिन । भागे के दिन तो दिख गे उनला त झगरा मतवा दिन । हिन्दू मुसलमान के झगरा । तुंहला पता नइए । कलकत्ता म जउन मारकाट, भोंगी के भोगा होय हे । हाहाकार मच गे । येती के मनखे      ओती । ओती के मनखे ऐती पाकिस्तान म हिन्दू गजब हें भारत में मुसलमान बहुत हे । नानकुन बात ये ग । देवारी दसराहा म घर ल लीपे पोते बर समान ल टारथन ता जीव आधा हो जथे । त देस म बसे  मनखे ल इहां उहां करब म का हाल होवत होही ।
     फेर बात अइसने ये भइया । सब माड़गे बात ह । गांधी बबा के किरपा ले जवाहर लाल नेहरू बनगें हमर प्रधान मंत्री अउ जिन्ना बनिस

पाकिस्तान के मुखिया।
     रजब अली किहिस - महराज, तंुहर पाकिस्तान केहेव तउन बात ह हमर छाती म कटार अस खुसरगे ग । सदा दिन के तुम सियान । अइसे कइसे केहेव भाई ।
     महराज किहिस - रजब भाई, मंय गलती कर पारेंव । पाप कर पारेंव, अइसन नई कहना रिहिस । हमर सबके भारत देस । तुम भारत के बेटा, हम भारत के लइका । मुंह ताय भई । चल गे । फेर एक बात हे भई मंय केहेंव तुंहर सगा मन मांगिन। माने के इस्लाम के मनइया मन अलग देस चाही किहिन ।
     पाकिस्तान देस चाही किहिन - मुसलमान नेता मन ।
     रजब किहिस - पंडित जी, इस्लाम म जोड़े अउ परेम करे के संदेस हे । हम जादा नई जानन भाई फेर हमर छत्तीसगढ़ म तो सबे झन एक दूसर के सगा होथन महराज । आप मन मोर सगा आव मंय आपके सगा । जऊ न दूसर देस बनाय के जिद्द करिन तेमन हमर सगा नोहंय महराज । जिंकर संग रहिके हम जीबो अउ जिंकर खांद म चढ़ के जाबों तेन हमर सगा महराज । हमला दुवाभेवा ये समय अच्छा नइ लागिस भाई, माफी देबे भाई । अब कभू अइसन बात नई निकर सकय मंुह ले ।
     अजादी मिल गे हमला । अब नई राहन लांघन भूखन । हमर हर पेट बर पानी पसिया अउ हर हाथ ल काम मिलही । अपन राज आगे ।
     अभी चरबत्ता चलते रिहिस, तइसने म आगे समेलाल अउ ऊं कर संगी साथी । समेंलाल ल देख के महराज हुकु म दीस - समें, बने समे आये बाबू । ले फेर घर जायके पहिली एक ठन गीत सुना डार ।
     रामेलाला अपन संगी मन संग खड़ा होगे, अऊ  सुनइस गीत -                                  गली गली, खोर खोर म उडत हे गांधी के नाव,              गांधी बबा बड़ परतापी,
धन धन ओकर छाती ।
बिना गोला बारूद भगाइस,


गोरा अंगरेज उत्पाती ।
भारत मां के मान बढ़ा के बन गेइस भगवान,
गली गली खोर खोर म उड़त हे गांधी के नाम ।
     गीत सुनके सब झन गजब संहरइन अऊ गांधी जी के जय बोला के अपन अपन घर डाहर निकरिन ।         
     महराज के संगे संग घनाराम मंडल चल दिस महराज बांड़ा । महराज किहिस- का बात ये मंडल, थोरूक फिकिर अस करत हव तइसे दिखथे ।
     घनाराम बतइस - महराज, आप तो सब जानते हव । समेलाल के बिहाव करना हे । पढ़  लिख डारिस । नार्मल इस्कूल ले निकल गे । अब मास्टर तो बनबे करही, फेर एक बात अउ हे महराज, समे के संगे संग मोर बड़े भाई के बेटवा नाथू के बिहाव करना हे । भाई गुजर गे । नाथू हे नगर जोत्ता । दू एक जगा गेंव त सगा मन किथें नाथू बर टूरी देबो त तोर बेटी धनेसरी ल बहू बनावो । माने के गुंरावट म बिहाव मड़ाबो किथें महराज । बड़ संसों म पर गेंव । नाथू बर बहू तभे आही जब बो घर म मैं बेटी देहूं । मरना ताय । बड़हर घर घलो नई जांव । अपने अस मंडल घर गेंव तेमा याहा तरा तना-नना । महराज किहिस - देखो जी, सब समे-समे के बात । सगा, जात-पात सब हमरे खेल ये । गरीब के गरीब सगा । बड़हर के बड़हर । मैं तंुहर गांव के रघोत्तम महराज, तंुहर मंदिर के           पुजेरी । बाम्हन तांव फेर सौ गाड़ा के जोतनदार बाम्हन घर टूरी मांगें बर नई जा सकंव । जाहूं अपने साही हमजोली बाम्हन घर । दानी के बिहाव महू ल मड़ाना हे । पढ़-लिख के उहूं ह तियार हे  । त आज छत्तीसगढ़ म गुंरावट होत हे बेटा के बिहाव जमाय बर । मैं कहात हंव ग काली इही टूरा मन सब पढ़ही । आगू निकल जाही । त देखबे, टूरी वाला मन हाथ जोरे जोरे आंही । अउ तब टूरी के बिहाव म आही अड़चन तब टूरा देके बेटी बर दामाद खोजहीं । इही दानी अउ समेलाल मन । जादा दिन नई लागय । दिन पलटत  कतेक समे लागथे । आज टूरी के किस्मत हे काली टूरा के


मान बाढ़ही । इही तो समे चक्र ये । घाम हे फेर छांव हे । काली तपत रिहिन अंगरेज । उनकर राज म सुरूज नई बुड़त रिहिस । अतेक देस मा राज रिहिस के कहूंू न कहूं सुरूज उवे राहय । देखेे कइसे दू पकती के सनडइया काड़ी अस लउठी धरइया हमर गांधी महत्मा का कर दिस । बुड़गे अंगरेजन के सुरूज । अब नवा सुरूज उ गे । ये हा अजाद भारत के सुरूज नारायण ये जी । धन्न हे हमर भाग जऊ न जीते जी अपन देस अउ धरती ल अजाद होवत देख सकेन ।

1 comment:

BIRENDRA SAHU JI said...

छत्तीसगढ़ी बोली भाखा म अतेक सुघ्घर रचना ल पड़ के मन बहुत आनन्द विभोर होगे।

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