रोज कोतवाल हांका पारय जागे जागे सुतिहव हो ... बियारी करे के बाद उमेंदी कोतवाल निकलतिस अउ गांव के चारों मड़ा किंदर-किंदर के हांका पारतिस । लीमतुलसी गांव के उमेंदी कोतवाल के ठेही चारों मुड़ा के कोतवाल मन बर सिखे के लइक ठेही राहय । जो ललकार के कितिस जागे जागे सुतिहॅव हो - हो हो... लइका सपट जय अपनदाई के पेट में । तऊ न उमेंदी कोतवाल अधरतिया उठ के जात राहय तरिया
डाहर । तरिया रद्दा के बर पेड़ के तरी म खड़ा होके हांका पारके उमेंदी आगू बढ़य । अभी हांका परइयाच रिहिस तइसने देख पारिस उमेंदी । अंधियार म दू झन सुटुर-पुटुर करत रहंय । उमेंदी ललकार के पूछिस कोन अव बे ? ऐती आवव । दूनों झन ल देख के उमेंदी के तरूवा सुखागे । उमेंदी पूछिस इंहा का करथव रात के ? टूरा राहय जंगलू ठेठवारके बेटा रामाधार अउ टूरी गांव के गनेस सिकारी के जुच्छा हाथ वाली राधा । रामाधार किहिस - भइंर्स ढिले हंव बड़ेे ददा ।
उमेंदी पूछिस - “भइंर्स चराथस त ढिलबे बाबू फेर ये टूरी राधा इहां का करत हे बे?”
रामाधार किहिस - “उही ल पूछ न बड़ा, ओकर बात ल मैं कइसे बतावंव भई ।”
उमेंदी पूछिस त राधा बतइस-”कोतवाल बबा, मंय रामाधार बर चूरी पहिरे चाहत हंव । इहू पहिराये बर तियार हे ।”
उमेंदी पूछिस - “रात के इहां बर पेड़ के तरी म चूरी पहिरे बर आय हस टूरी । अतेक झन तपव । हमू मन रेहेन जवान । फेर अइसन नई तपेन जउन तपही तउन खपही । गांव के मरजात राखव । भाग इहां ले । काली गांव म दू चार झन सियान मन ल बलाहूं तव होही फैसला ।”
बड़े फजर उमेंदी चल दिस रघोत्तम महराज के घर । सब बात ल सुन के महराज सन्नागे । किहिस -
“कतको राउत पिंगल पढ़े
बारा भूत के चाल चले ।”
अलकरहा कर डारिन रे । जा बला जंगलू अउ रामाधार ल, गनेस अउ राधा घलो ल बला । सब आगें तब महराज किहिस- “चलव फेर पिपर पेंड़ के चौरा म बइठबो अउ सब फरियाबो ।”
बिसाहू, बिसून दाऊ , अंकलहा, गांव के सब सियान आगें । महराज किहिस, पहली एक भजन गा लव जी मोर संग । मन बड़ विचलित हे रे भाई । का दिन देखे बर परत हे । मैं गाहूं थपड़ी पीट के तुहू मन गाहूं ।
महराज सुरू करिस - झीनी झीनी रे बीनी चदरिया...
सब झन दुहरइन । फेर महराज पूरा पद ल अकेला गा के सुनइस...
“काहे के ताना काहे के भरनी,
कौन तार से बीनी चदरिया ।
इंगला पिंगला ताना भरनी,
सुषमन तार से बीनी चदरिया ।
आठ कमल दल चरखा डोले,
पांच तन गुनतानी चदरिया ।
साई को सियत मास दस लागे,
ठोंक ठोंक के बीनी चदरिया ।
सो चादर सुर नर मुनि ओढ़े,
ओढि के मैली कीनि चदरिया ।
दास कबीर जतन ते ओढ़ी,
ज्यों की त्यों धरि दीनि चदरिया ।”
पद ल सुना के महराज किहिस - “दास कबीर जतन ते ओढ़ी” के मतलब ये हे जी के मनुख तन धरे हन तेला जतन करके राखे बर परही ।
अतका कहिक कोतवाल ल पूछिस - बता रे उमेंदी, का बात ये तेला । उमेंदी सफ्फा-सफ्फी बता दिस । महराज पुछिस - कइसे रामाधार का ये बात ह सही ये । अतका सुनना रिहिस के जंगलू ठेठवार हाथ म मूड़ भर के लउठी लेके होगे खड़ा । किहिस - महराज, मोर बेटा हे भोकवा, ओला झन पूछव । ये गांव लीमतुलसी म का का नई हम देखत आयेन, सब घर बेटी बहू हे । बेटा हे । मोर बेटा ल कहूं धसाहू त मैं तो भई अगास पताल एक कर दुहंू । महराज जंगलू ल किहिस - जंगलू ये पंचइत ये । थोरूक धीरज से काम ले । बइठ जा । अतका ल सुनिस त गांव के पगला कवि मनहरण थपड़ी पीट के किहिस -
“जेखर हाथ म लउठी भइया,
ओखर हाथ म भंइसा ।
बघवा मन सब कोलिहा होगे,
देख तमासा कइसा ।”
मनहरण के बात म सब हांस परिन । मनहरण ल बने लागिस । गिस गिस अउ रघोत्तम महराज के पांव ल परके किहिस - “मोर कबित्त बने लागिस का महराज ? एक ठन अउ सुना पारतेंव भाई ।” सब झन मनहरण ल किहिन - बइहा, अभी कुमेटी जुरे हे रे । कबित्त बाद म सुनाबे ।
मनहरण किहिस - बइहा मय नहीं, तुम सब बइहा अव । बने बात ल सुनना नहीं अउ जनाकारी, उढ़रिया, पेट के बात म रस लेना सुन लव कविता । तब करहूं नियाव ।
महराज किहिस - सुन लव रे भाई येकरो सुन लब ।
महराज के फेर पांव परिस मनहरण अउ किहिस - लीमतुलसी गांव में कबित्त जानने वाला एक मैं, एक महराज । बाकी सब सुनइया हें । गुनइया दू झन । बिसनू दाऊ किहिस - दू चटकन दुहूं हरामी साले ल । जल्दी सुना न बे । अउ जा । मनहरण रोसिया गे । सुनइस कविता - “कुरमी तेली खेती म बिगड़िस,
बाम्हन बनिया सेखी म,
सतनामी बिगड़िस अदालत कछेरी म,
ढिमरा केंवट मछरी म,
गंड़वा बिगड़गे नचई कुदई म,
ठाकुर बिगड़गे टेस म,
लोधी बिगड़गे ढार खिनवा म,
सिकारी ठेठवार उढ़रिया म ।”
अतका सुनना रिहिस के महराज कठलगे । सब झन हांस पारिन । हांसी थमिस त महराज किहिस - ये ला केहे जाथे आसू कवि । माने के तुरते कविता बना के सुना देना । “मनहरन धन्न हे बेटा । जा रे नाव कमाबे । आज ठेठवार रामाधार अउ सिकरनिन राधा के बारे में बइठका
हे । अतके जान पाइस हमर मनहरण हा । अउ ओतके म का बढ़िया कबित्त जमइस । सिकारी ठेठवार उढ़रिया म । वाह । हमर आधा काम तो बाबू तंय सम्हार लेस रे । बात इही आय रे भाई हो । उढ़रिया के बात। अब येे जंगलू ठेठवार ठठावय चाहे बजावय, नियाव होना हे । पंच सब बइठे हें । करंय भई नियाव ।”
घनाराम मंडल किहिस - “बाबू रामाधार अउ नोनी राधा दुनों रात कन एक जगा दिखिन । कोन ल ? उमेंदी कोतवाल ल । बने बात ये, फेर दुनो रात के काबर मिलिन । का विचार हे ? तेला उही मन सो पूछ लेना चाही ।”
जंगलू किहिस - “मंडल, मोर बेटा सदा दिन के भैंस चरईया । राधा गिस होही गोबर बिने बर, खेल खतम ।”
बिसनू दाऊ उठके किहिस - “जंगलू रात के जब जवान टूरा अउ मोटियारी टूरी मिलथें त खेल सुरू होथे जी, खतम नई होय, जाने ।”
ओकर बात ल सुनके सब हांस परिन । बिसाहू किहिस - “देखो जी, हांसी ठट्ठा के बात नोहय । दिन बदल गे । देस अजाद होगे फेर अतेक अजाद नई होय चाही के बेलुज्जर गांव म नंगा नाच होय लगय । धरम-करम नियम घलो हे । नियाव करव अऊ बिगड़े ल बनावव । पूछ लव रामाधार सों ।”
जंगलू फेर लाल आंखी देखइस । फेर कहां चलना हे । पथरा तरी हाथ चपकाय रहय । सोचिस मोरे सोन गिनहा हे त सोनार ल का काहंव रे । रघोत्तम महराज किहिस- देख जंगलू, तोर बाबू के बाई नई ये । तोर बहू ल गुजरे बछर भर होगे । टूरी राधा घलो सज्ञान हे । बनतिस ते बिहा लव । सब बात बने बनाय हे । पहिरा ले चूरी रामाधार बर ।
अब जंगलू उठ के किहिस - “महराज आप गियानी धियानी हव । लइका मन गलती कर पारिन त छिमा करतेव । लइका हा जांघ म हाग देथे महराज ता जांघ ल नई काटे जाय ।”
अब रामाधार किहिस - “ददा, मैं राधा संग करहंू बिहाव ।
राखहूं । गलती तो कर पारंेव ।”
जंगलू होगे सुकुड़ दुम्म । न हुकत बनय न भुंकत । चुप बइठगे अपन जगा म । थोरिक सुस्ता लिस त फेर हाथ जोर के उठिस । किहिस - “महराज, आखिरी परस्न करे चाहत हंव । दसो अगरी के बिनती हे मोर । धरम-करम के बात ये । मैं राधा ल बहू बना लेतंेव । फेर आपे मन बताव ठेठवार अऊ सिकारी के जात अलग अलग हे । कइसे पार लगही । घनाराम मंडल ल उठ के केहेबर परिस - “भाई हो, हमरे गांव मा आय रिहिन डॉ. खूबचंद बघेल । अपन बेटी राधा के बिहाव करिन डॉक्टरसाहेब मन । का कर संग ? जानथव जी, अरे गुन्निक लइका रामचंद्र देसमुख संग । डाक्टर साहब आय मनवा कुर्मी रामचंद्र ह डिलवार कुर्मी । झगरा मात गे । बारा बछर ले पतरी उठाय के सजा ये मेर हे ग । अतेक बड़ नेता, तेहा रद्दा बनाय बर गांधी बबा के मारग म चलिस । दू दल ल मिलइस । कुर्मी ल कु र्मी संग । तेकर बर ओला डांड़ परिस । कतेक भेद हे समाज म । एक जात अउ दूसर जात के बात दुरिहा रहिगे कुर्मी कुर्मी म भेद हे रे भाई । कहां जाही हमर देस हा । जात पात ल कोन टोरही । नई टोरहू त देस टूट जाही । उही कारण बन तो गे पाकिस्तान । अउ हमी मन मार डारेन गांधी बबा ला । सरीर के मौत ह मौत नोहय । सरीर तो माध्यम ये । असल चीज हे बिचार । बिचार तो तभे मरगे बापू के जब देस के दू कुटा होगे । बाद म जौन कुछ होइस ते हा उपराहा ये ।” काहत काहत घनाराम मंडल रोय लागिस । रघोत्तम महराज उठ के चुप करइस । सब झन के माथा ओरम गे । कतको झन तो गमे नई पइन । भाका तीर म बइठे गज्जू ला पूछिस - ये बापू कोन ये जी । घनाराम के बड़े ददा रिहिस का । काबर रो दिस । बाप के मरे म घलो अतेक नई रोइस बुजा हा ।
गज्जू किहिस - सब झन मिल जुल के राहव, कोनो ल मारव पीटव झन, दुख झन दव कहैया राहय जी गांधी । तेकर छाती म गोली लागिस । तेकर सेती रोवत हे मंडल हा ।
भाका अकबका गे - पूछिस, मिल जुल के राहव केहे म मार
दिन जी ? हव, ओतकेच कहई हा जबर गलती होगे । देख न इहों लीमतुलसी म का होत हे तेला । खुसूर-पुसूर ल सुन के रघोत्तम महराज किहिस - भाका काय गड़ायन निकाले हव जी ।
भाका खड़ा होके किहिस - “महराज, तंुहला हम हाथ जोर के बिनती करत हन । मान जव, देवता । तुहंू मन गांव म मेल मुलाकात के गोठ गजब करथव । तुंहरो छाती म गोली लाग जाही । दूसर के टूरी दूसर के टूरा फोकट म अपन जीव ल झन दव गुरूजी ।” महराज भाका के बात ल सुन के हांस पारिस । किहिस - “एक दिन तो सबला मरना हे भाका । मरबो फेर मेल के बात करके मरबो । दूसर कोनों नोहय जी सब अपन ये । मानबे त सब अपन नई, मानबे ते अपने ह सबले बड़े दुस्मन ।”
जंगलू किहिस - “भइंर्स - गाय घर में बोरक्की देवत हे महराज । नियाब फेर दूसरे दिन करतेव । आज माफी दव गुरू ।”
बिसाहू किहिस - “इहां मनखे सब बोरक्की देवत हन तेकर तोला खियाल नइये ठेठवार ।”
जंगलू किहिस - “देख बिसाहू मंडल कहे गेहे - ठलहा बनिया हलावय कनिहा काम न धाम । का कर बे तंय हा ।”
बिसाहू किहिस - “येकरे सेती कहे गेहे जी अहिरा दोस्ती तब करे जब सबे जात मर जाय । राधा के सेती आय हे सब बाधा सुने ल परत हे हमला ।”
रघोत्तम महराज उठ के किहिस - “देखो जी, या तो नियाब कर लव, या तो फेर लड़ाई कर लव ।” अंकलहा उठ के किहिस - “महराज सब झन चाहत हन आप कर दव नियाव ।”
महराज जंगलू ल पूछिस - “कस जंगलू, पंच के नियाब म रिबे के नई रिबे । जंगलू मूंड़ी गडियाय किहिस - “रइहूं महराज ।”
सब अतका सुनिन तहां का पूछना हे । गदक गंे सब । खुसी छागे । तिजाही उपसहिन मन फरहार पा के जइसे हरियाय जाथें तइसने
पंच मन के मुंह म चमक आगे । पांच पंच उठिन । बाहिर निकल के कुछू बातचीत करिन अउ आके सुना दिन फैसला ।
“एक - जंगलू राधा ल बहू बना के लेगही । दू - गांव के अन्न कोठी म दू बोरा धान दिही ।”
जंगलू उठ के किहिस - “ये दुनो बात ल मंय मानहूं अउ अपन कोती ले एक बात अउ महराज, लिल्ला घलो कराहूँ ।”
अतका सुनना रिहिस के महराज उठ के खड़ा होइस । किहिस - “बेटी राधा, चल पांव पर अपन ससुर के ।”
राधा उठ के टप-टप पांव परे लागिस । सब असीस दीन । फैसला होगे के चूरी पहिरही चैत म । पहली लिल्ला हो जाये । सब हांसत कुलकत घर डहर निकरगें । मनहरण एक कबित्त अउ कहे चाहत रिहिस । घनाराम मंडल थामिस । मनहरण किहिस - “कबित्त नोहय बड़े ददा । गीत ये । जरूर गाहूं । चाहे मारव के पीटव । मनहरण गाय लागिस -
“पइयां मय लागत हवं चंदा सुरूज के रे सुवना ,
के तिरिया जनम झन देय ।
तिरिया जनम मोर गउ के बरोबर रे सुवना,
जहां पठोवय तहां जाय,
अंगठिन मोरि मोरि घर लिपावय रे, सुवना,
मोर ननदी के मन नई आय ।
मनहरण अउ लमातिस । फेर बेरा चढ़गे रिहिस । सब हांसत मुचमुचावत रेंग दीन । राधा भर रोवत उठिस अउ मनहरन कवि के पांव परे बर निहर गे । मनहरण किहिस - “बहिनी, जब ले दुनिया बने हे तब ले तिरिया ल ठगे हे सब । राम सहीं गोसइयां के बाई छितामाई ल पिरथी म समा जाय बर परिस बहिनी । आजो उही होत हे । माई लोगन के पत रखइया कोनो नइये । अपन रच्छा खुद करबे । देख सुन के हाथ गोड़ बचा के चलब म तंुहर चोला बांचही । नई ते धारे धार बोहात रइहू । मरद समाज ठग्गू समाज । ठग फुसारी करके सदा दिन माई लोगन के गर म
फांसी लगइन अउ तब ले बड़का कहइन ।
लीमतुलसी गांव के नियाव के बात जउने सुनय तउने अकबका जय । ओरवाती के धार बरेंडी चढ़त हे । कड़क्का के सजर अली अपन गांव के मनखे मन ला बतइस । कड़क्का म दस बारा घर के मुसलमान हें । तिहार बार म आथें जाथें । लीमतुलसी गांव म लिल्ला होवइया हे । जंगलू ठेठवार करावत हे । सब खरचा देवत हे । खबर गांव-गांव पहुंच गे । सब गांव ल नेवता दे गीस । ठउका दसहरा के नौ दिन पहली माड़गे लिल्ला । राम जनम से रावण तक के लिल्ला जमथे लीमतुलसी म ।
पहली दिन रमायन ल मुंड़ में बोहके लिल्ला चौरा म लाने जाथे । रघोत्तम महराज ल गाड़ी म बइठारे जाथे । गाड़ी ल कलाकार मन तिरथंे तब गुरूजी पूजा पाठ करके लिल्ला सुरू करथे ।
पूजा होत ले कटाकट मनखे सकलागें । सुधु केंवट अउ मराखन मरार जोक्कड़ बनके अइन । नाचिन अउ दोहा पारिन -
“सुनो सब सज्जन सीला,
आज सभा के बीच म होही,
राम जनम के लीला ।”
ये तरा ले लीला के कथा के बारे में बताय गिस । अउ लिल्ला सुरू होगे । रोज जंगलू ठेठवार आवय अउ रात भर लीला देखय । रामसीता बिहाव के दिन तो जंगलू टिकावन दीस । रामाधर अउ राधा अलग - अलग टिकावन दीन । रात भर लीला होय । बिहनिया पहाटिया अउ बइला चरवाहा टुरा मन उघावत रहंय । ठाकुर मन गारी दंय । फेर लिल्ला के नसा नई छूटय । रघोत्तम महराज निपढ़ मन ला पाठ देे के कलाकार बना दिस । वो कलाकार मन लिल्ला के गीत ला गावंय चारों मुड़ा के गांव म इंकर जस फइले रहय । अइसन पाठ ल भला कोन छोड़े सकत हे । सब मने मन म घोखत रहंय ।
गांव गोहार परगे । रात भर लिल्ला चलय । लीमतुलसी लिल्ला मंडली नांव बाजे राहय । अब एक ठन अलकरहा खबर आगे । चेटुवाबाट
के कउहा पेड म कोनों मोटियारी टूरी फांसी लगा लिस । रावन बध के दिन बांचे राहय दू दिन । येती गांव म नवा समसिया आगे । चारो कोती के मनखे झूम गें । देखिन सब झन । राधा अपन गर म फांसी लगा के झूल गे रहय । अउ फांसी लगाय राहय मजबूत डोरी मं। राधा के पांव मेंड़ म माड़गे राहय । रोवत ललावत जंगलू ठेठवार अइस । ओकर हाथ के तेंदूसार के लउठी फेंका गे । अंइठ मुरेरी पागा छरिया गे । रो-रो के किहिस - “तय का कर डारे दाई । काबर फांसी लगा लेस । हमला अनाथ कइसे कर देस ।”
राधा के बाप बिहुस होगे । रघोत्तम महराज अइस । जंगलू ओकर गोड़ म गिर के किहिस - “गुरू जल्दी मोर बहू के डोरी कटवावव । मैं खात खववनी करहूं । सब खर्चरी देहूं । मोर बेटा बर मांगे रहेंव तुंहर सों । अब मोला हुकु म दे दव कारज करे के । उमेंदी अड़गे । किहिस - “जंगलू सरकार के नियम हे । अंगरेज चल दिन फेर उनकर बनाय नियम कायदा हे । झन उतारव लास ल । पहली मैं थाना जाके रपोट करहूंू तब उतारहू । निते चले जाहू लाल बंगला ।” जंगलू संख उड़ागे । महराज के पांव ल धर के किहिस - हमर लीमतुलसी म महराज तंुहर आसीरबाद से आज तक ले पुलुस चाकर सिपाही नई अइस । अब गांव ह मात जाही मालिक.. ।”
महराज के माथा ठनक गे । गांव हा मात जाही याहा का काहत हे ठेठवार ह भाई । महराज उमेंदी ल ललकार के किहिस- “उमेंदी सांच ल आंच का । जा जल्दी थाना । बला के लान । जब हम अनीत नई करे हन तब डर्राबो काबर, जा बुजरी भाग के जा ।”
कब उमेंदी गीस अउ थाना के साहेब अइस जंगलू गमे नई पइस । निसपिटर आके देखिस लहास ल । देखते दांई किहिस - “ये हा आपघात नई करे ये । खुदे फांसी नई लगाये ये । कोनो मार के अरो देहे । कोने साला हा । अब तो गांव के गांव बंधा जाही रे । धुर्रा धरा दुहूूं । साले मरइया हइतारा आ जय सामने नई ते जब तरूवा म परही डंडा त साले डंडा सरन गिरही तभौ नई छोड़ंव रे ।”
गांव भर के सकलाय मनखे भिरमिराय लगिन । निसपिटर किहिस - “अरे, लंबरदार, लइन में गांव भर के मनखे ल खड़ा कर दे । मंय आंखी ल देख के हइतारा ला चिन लिहूं ।”
हवलदार सब झन लइन म ठाड़ करइय्या राहय तइसने जंगलू के बेटा रामाधार अइस अउ गोहार पार के रोये लागिस । किहिस - “ददा के बात म आके राधा ल मैं मार पारेंव । मही अरो दे हंव पेड़ म । मोला मार डरव ददा हो । अब जी के का करहूं ।”
जंगलू किहिस - “महराज, मोर मति परागे महराज । महीं कहि परंेव कुल मा दाग लगा देस रे रामाधार । अब दाग ल तहीं मेंटबे बेटा । मोर बेटा होबे ते राधा के नाव निसान मिट जाय चाही । मंय का जानंव ददा के अइसन जउंहर हो जाही ।”
पुलिस वाला मन रामाधार ला लगा दिन हतखड़ी । लीमतुलसी गांव म पहली बार अइसन दुख अइस । माई लोगन सब रोय लगिन । लइका मन डर्रागें । रात कन डर के मारे तीन झन लइका मन ल उल्टी-टट्टी होगे । चेटुवा बाट रेंगना मुस्कुल हांेगे । गांव सांय-सांय करे लागिस ।
महराज किहिस - “अब का रावन वध के लीला करबो जी । नवा-नवा रावन सब जिमीकांदा कस पोथी जागत हें । के झन ला मारबो । बंद करव सब लिल्ला । अब ये गांव म नई राहंव । चल दुहूं छोड़ के ।
बिसाहू महराज के पांव म गिरगे । किहिस - “गुरू तंुही मन किथव ... धीरज धरम मित्र अरू नारी, आपत काल परिखिये चारी ।”
गांव में पहली बार याहा तरा घटना घटे हे गा । धीरज धर के सब जुर मिल के अंधियारी रात म मसाल जलाबो महराज । रावन बाढ़गे त रमदल्ला ल घलो तो बढ़ाबो महराज । हम तोर दल के नान-नान बंेदरा आन । हमला अके ल्ला झन कर महराज ।
बिसनू दाऊ हाथ जोड़ के किहिस - “गुरूजी अब कहूं इहां ले जाहू त हम सब बिन ददा दाई के लइका कस हो जाबो ग । हम जानत हन
आपके मन के दुख ला- कोनो मरे लाज के मारे, कोनो कहे डेरात हे । तउन हाल हे । आप मरत हव लाज के मारे महराज । आपके बनाय गांव म हइतारा निकर गे । फेर बात अइसन ये के रात हे ते दिनो हे । हमर गांव बर तो आप बइगा बनके आये हव महराज । ये हा बनही त आपे से बनही । रावन मारबो, अउ जुर मिल के मारबो ।”
घनाराम, अंकलहा , रतीराम सब जुरिया गें । सब झन किहिन लिल्ला म विघन नई होय चाही महराज ।
राज करन्ते राज नई रहि जाय,
रूप करन्ते रानी,
रहि जइहंय नाव निसानी ।
जब तक लीमतुलसी गांव रिही तंुहर जस के गीत सब गाहीं । महराज किहिस - “धन्नहे जी मोर भाग, जउन तंुहर अस चेला पायेंव रे भाई हो । मंय थोरूक रद्दा भुलाय अस परेंव गा । तुमन थाम ले करव रे भाई ।”
मनहरन कवि महराज के पांव परके किहिस - “महराज, हम सब ढेला अउ पत्ता तान ग । गुरू चेला मिलबो तब मरही रावन । आप कहूं गियान के अगास म उड़ाहू त हम सब चेला ढेला बन के चपक बो । अउ हम चेला मन कहूं दुख अउ अज्ञान म चोरो - बोरो होके घुरे लगबो त तंय ज्ञान के पत्ता म तोप के बचाबे गुरूजी । अइसे कइसे हमनला छोड़के पराबे गुरूजी ।
महराज मनहरन के बात ल सुनके हांसपरिस । सांझ हो गे राहय । चिरई चिरगुन सब अपन खोंधरा म लहुटत रहंय । अगास म करिया- करिया बादर दिखत रहय । पानी अबक तबक गिरही तइसे लागत राहय ।
महराज बिसाहू ल किहिस - दुब्बर बर दू असाढ़ केहे गे हे बिसाहू । एक तो राधा के हइता होगे उप्पर ले बादर अंधियारत हे । दुख ह अकेल्ला नई आवय बाबू । चलव फेर कांही बिधि ले मारे जाही रावन । करव तियारी ।
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अतेक सुघ्घर रचना बर आप ल कोटी कोटी बधाई एवं शुभकामनाएं
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